पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और भावार्थ - पद स्पर्श भाग - 2
भावार्थ
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढायो चीर।भगत कारण रूप नरहरि , धरयो आप सरीर।
बूढतो गजराज राख्यो , काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ , सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनू बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में भेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
उँचा उँचा महल बणाव , बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ , पहर कुसुम्बी साडी।
आधी रात प्रभु दरसण , दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवडो घणो अधीराँ॥
बिन्दरावन में भेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
उँचा उँचा महल बणाव , बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ , पहर कुसुम्बी साडी।
आधी रात प्रभु दरसण , दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवडो घणो अधीराँ॥
भावार्थ - इन पदों में मीरा भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहतीं हैं कि हे श्याम! आप मुझे अपनी दासी बना लीजिये। आपकी दासी बनकर में आपके लिए बाग–बगीचे लगाऊँगी , जिसमें आप विहार कर सकें। इसी बहाने मैं रोज आपके दर्शन कर सकूँगी। मैं वृंदावन के कुंजों और गलियों में कृष्ण की लीला के गान करुँगी। इससे उन्हें कृष्ण के नाम स्मरण का अवसर प्राप्त हो जाएगा तथा भावपूर्ण भक्ति की जागीर भी प्राप्त होगी। इस प्रकार दर्शन, स्मरण और भाव–भक्ति नामक तीनों बातें मेरे जीवन में रच–बस जाएँगी ।
अगली पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मेरे प्रभु कृष्ण के शीश पर मोरपंखों का बना हुआ मुकुट सुशोभित है। तन पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं। गले में वनफूलों की माला शोभायमान है। वे वृन्दावन में गायें चराते हैं और मनमोहक मुरली बजाते हैं। वृन्दावन में मेरे प्रभु का बहुत ऊँचे-ऊँचे महल हैं। वे उस महल के आँगन के बीच–बीच में सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनाना चाहती हैं। वे कुसुम्बी साड़ी पहनकर अपने साँवले प्रभु के दर्शन पाना चाहती हैं। मीरा भगवान कृष्ण से निवेदन करते हुए कहती हैं कि हे प्रभु! आप आधी रात के समय मुझे यमुना जी के किनारे अपने दर्शन देकर कृतार्थ करें। हे गिरिधर नागर! मेरा मन आप से मिलने के लिए बहुत व्याकुल है इसलिए दर्शन देने अवश्य आइएगा।
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अगली पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मेरे प्रभु कृष्ण के शीश पर मोरपंखों का बना हुआ मुकुट सुशोभित है। तन पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं। गले में वनफूलों की माला शोभायमान है। वे वृन्दावन में गायें चराते हैं और मनमोहक मुरली बजाते हैं। वृन्दावन में मेरे प्रभु का बहुत ऊँचे-ऊँचे महल हैं। वे उस महल के आँगन के बीच–बीच में सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनाना चाहती हैं। वे कुसुम्बी साड़ी पहनकर अपने साँवले प्रभु के दर्शन पाना चाहती हैं। मीरा भगवान कृष्ण से निवेदन करते हुए कहती हैं कि हे प्रभु! आप आधी रात के समय मुझे यमुना जी के किनारे अपने दर्शन देकर कृतार्थ करें। हे गिरिधर नागर! मेरा मन आप से मिलने के लिए बहुत व्याकुल है इसलिए दर्शन देने अवश्य आइएगा।
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