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Saturday, 3 October 2015

कारतूस - पठन सामग्री और सार NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - कारतूस स्पर्श भाग - 2

सारांश

यह पाठ जाँबाज़ वज़ीर अली के जिंदगी का एक अंश है। इस नाटक में उस हिस्से को बताया गया है जब वज़ीर अली अपने दुश्मन के कैंप में जाकर वहाँ से अपने लिए कारतूस ले जाता है और अपने बहादुरी का गुणगान अपने दुश्मनों से करवाता है।

नाटक के पात्र - कर्नल, लेफ्टिनेंट, सिपाही, सवार (वज़ीर अली)

अंग्रेज़ सरकार के आदेशानुसार वज़ीर अली को गिरफ्तार करने के लिए कर्नल कालिंज अपने लेफ्टिनेंट और सिपाहियों के साथ जंगल में डेरा डाले हुए हैं। उन्हें जंगल में आये हुए हफ्ते गुजर गए हैं परन्तु वह अभी तक वजीर अली को गिरफ्तार नही कर पाये हैं। वजीर अली के दिल में अंग्रेज़ों के प्रति नफरत की बातें सुनकर उन्हें रॉबिनहुड की याद आ जाती है। अपने पांच महीने के शासनकाल में उसने अवध के दरबार से अंग्रेजी हुकूमत को साफ़ कर दिया। सआदत अली आसिफउद्दौला का भाई है साथ ही वज़ीर अली का दुश्मन भी है क्योंकि आसिफउद्दौला के यहाँ लड़के की कोई उम्मीद नहीं थी परन्तु वज़ीर अली ने सआदत अली के सारे सपने को तोड़ दिया।

अंग्रेज़ों ने सआदत अली को अवध के तख़्त पर बैठाया क्योंकि वो अंग्रेज़ों से मिलकर रहता है और ऐश पसंद आदमी है। इसके बदले में सआदत अली ने अंग्रेज़ों को आधी दौलत और दस लाख रूपये नगद दिए।

लेफ्टिनेंट कहता है कि सुना है वज़ीर अली ने अफ़गानिस्तान के बादशाह शाहे-ज़मा को हिन्दुस्तान पर हमला करने की दावत दी है इसपर कर्नल ने कहा कि अफ़गानिस्तान को हमले की दावत सबसे पहले टीपू सुल्तान ने दी, फिर वज़ीर अली ने भी उसे दिल्ली बुलाया फिर शमसुद्दौला ने भी जो नवाब बंगाल का रिश्ते का भाई है और बहुत खतरनाक है। इस तरह पूरे हिन्दुस्तान में कंपनी के खिलाफ लहर दौड़ गयी है। यदि यह कामयाब हो गयी तो लार्ड क्लाइव ने बक्सर और प्लासी के युद्ध में जो हासिल किया था वह लार्ड वेल्जली के हाथों खो देगी। कर्नल पूरी एक फ़ौज लिए वज़ीर अली का पीछा जंगलों में कर रहा है परन्तु वह पकड़ में नहीं आ रहा है।

कर्नल ने वज़ीर अली द्वारा कंपनी के वकील की हत्या करने का किस्सा सुनाते हुए कहा कि हमने वज़ीर अली को पद से हटाकर तीन लाख रूपए सालना देकर बनारस भेज दिया। कुछ महीने बाद गवर्नर जनरल ने उसे कलकत्ता बुलाया। वज़ीर अली बनारस में रह रहे कंपनी के वकील के पास जाकर पूछा कि उसे कलकत्ता क्यों बुलाया जाता है इसपर वकील ने उसे बुरा-भला कह दिया, जिस कारण वज़ीर अली ने वकील को खंजर से मार दिया। उसके बाद वह अपने कुछ साथियों के साथ आजमगढ़ भाग गया वहां के शासन ने उनलोगों को सुरक्षित घागरा पहुँचा दिया अब वे इन्हीं जंगलों में कई साल से भटक रहे हैं। लेफ्टिनेंट द्वारा पूछे जाने पर कर्नल ने वज़ीर अली की स्कीम बताते हुए कहता है कि वे किसी तरह नेपाल पहुँचना चाहते हैं। अफ़गानी हमले का  इंतज़ार करें  ताक़त बढ़ाएँ। वह सआदत अली को उसके पद से हटाकर खुद कब्ज़ा करे और अंग्रेज़ों को हिन्दुस्तान से निकाल दे। लेफ्टिनेंट अपनी शंका जताते हुए कहता है कि हो सकता है की वे लोग नेपाल पहुँच गए हों जिसपर कर्नल उसे भरोसा दिलाते हुए बताता है कि अंग्रेजी और सआदत अली की फौजें बड़ी सख्ती से उनका पीछा कर रही हैं और उन्हें पता है की वह इन्हीं जंगलों में है।

तभी एक सिपाही आकर कर्नल को बताता है कि दूर से धूल उड़ती दिखाई दे रही है लगता है कोई काफिला चला आ रहा हो। कर्नल सभी को मुस्तैद रहने का आदेश देता है। लेफ्टिनेंट और कर्नल देखते हैं की केवल एक ही आदमी है। कर्नल सिपाहियों से उसपर नजर रखने को कहता है। घुड़सवार उनकी और आकर रुक जाता है और इज़ाज़त लेकर कर्नल से मिलने अंदर जाता है और एकांत की माँग करता है जिसपर कर्नल सिपाही और लेफ्टिनेंट को बाहर भेज देते हैं। वह कर्नल से कहता है कि वज़ीर अली को पकड़ना कठिन और कारतूस की माँग करता है। कर्नल उसे कारतूस दे देता है। जब वह कारतूस लेकर जाने लगता है तो कर्नल उससे उसका नाम पूछता है। वह अपना नाम वज़ीर अली बताता है और कारतूस देने के कारण उसकी जान बख्शने की बात कहता है। उसके चले जाने के बाद लेफ्टिनेंट जब पूछता है कि कौन था तब कर्नल एक जाँबाज़ सिपाही बतलाता है।

लेखक परिचय

हबीब तनवीर

इनका जन्म 1923 में छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुआ था। इन्होनें 1944 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद ब्रिटेन की नाटक अकादमी से नाट्य-लेखन अध्यन करने गए और फिर दिल्ली लौटकर पेशेवर नाट्य पांच की स्थापना की।

प्रमुख कार्य

प्रमुख नाटक - आगरा बाज़ार, चरनदास चोर, देख रहे हैं नैन, हिरमा की अमर कहानी।
बसंत ऋतू का सपना, शाजापुर की शांति बाई, मिट्टी की गाडी और मुद्राराक्षस नाटकों का आधुनिक रूपांतर किया।
पुरस्कार - फेलोशिप, पद्मश्री सहित कई अन्य पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• खेमा - डेरा
• अफ़साने - कहानियाँ
• कारनामे - ऐसे काम जो याद रहें
• पैदाइश - जन्म
• तख़्त - सिंहासन
• मसलेहत - रहस्य
• ऐश पसंद - भोग विलास पसंद करने वाला
• जाँबाज़ - जान की बाज़ी लगाने वाला
• दमखम- शक्ति और दृढ़ता
• जाती तौर पर - व्यक्तिगत रूप से
• वज़ीफा - परवरिश के लिए दी जाने वाली राशि
• मुकर्रर - तय करना
• तलब किया - याद किया
• हुक्मरां - शासक
• गर्द - धूल
• काफ़िला - एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने वाले यात्रियों का समूह
• शुब्हे - संदेह
• दिवार हमगोश दारद - दीवारों के भी कान होते हैं
• लावलश्कर - सेना का बड़ा समूह और युद्ध सामग्री
• कारतूस - पीतल और दफ़्ती आदि की एक नली जिसमें गोली तथा बारूद भरी होती है।


Thursday, 17 September 2015

पतझर में टूटी पत्तियाँ - पठन सामग्री और सार NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - पतझर में टूटी पत्तियाँ स्पर्श भाग - 2

सारांश

इस पाठ में दो प्रसंग हैं। पहला 'गिन्नी का सोना' का है जिसमें लेखक ने हमें उन लोगों से परिचित कराया है जो इस संसार को जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं। दूसरा प्रसंग है 'झेन की देन' जो हमें ध्यान की उस पध्दित की याद दिलाता है जो बौद्ध दर्शन में दी हुई है जिसके कारण आज भी जापानी लोग अपनी व्यस्ततम दिनचर्या की बीच कुछ चैन के समय निकाल लेते हैं।

(1) गिन्नी का सोना

शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग होता है। गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है जिससे यह ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने से मजबूत भी हो जाता है इस कारण औरतें अक्सर इसी के गहनें बनाती हैं। शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने की तरह होता है परन्तु कुछ लोग उसमें व्यावहारिकता का थोड़ा-सा ताँबा मिलाकर चलाते हैं जिन्हें हम 'प्रैक्टिकल आइडीयालिस्ट' कहते हैं परन्तु वक़्त के साथ उनके आदर्श पीछे हटने लगते हैं और व्यावहारिक सूझबूझ ही केवल आगे आने लगती है यानी सोना पीछे रह गया और केवल ताँबा आगे रह गया।

कुछ लोग गांधीजी को 'प्रैक्टिकल आइडीयालिस्ट' कहते हैं। वे व्यावहारिकता के महत्व को जानते थे इसलिए वे अपने विलक्षण आदर्श को चला सकें वरना ये देश उनके पीछे कभी न जाता। यह बात सही है परन्तु गांधीजी कभी आदर्श को व्यावहारिकता के स्तर पर नही उतरने देते थे बल्कि वे व्यावहारिकता को आदर्शों के स्तर पर चढ़ाते थे। वे सोने में ताँबा मिलाकर नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे इसलिए सोना ही हमेशा आगे रहता। 

व्यवहारवादी लोग हमेशा सजग रहते हैं। हर काम लाभ-हानि का हिसाब लगाकर करते हैं वे जीवन में सफल होते हैं, दूसरों से आगे भी जाते हैं परन्तु ऊपर नहीं चढ़ पाते। खुद ऊपर चढ़ें और साथ में दूसरों को भी ऊपर ले चलें यह काम सिर्फ आदर्शवादी लोगों ने ही किया है। समाज के पास अगर शाश्वत मूल्य जैसा कुछ है तो वो इन्हीं का दिया है। व्यवहारवादी लोग तो केवल समाज को नीचे गिराने का काम किया है।

(2) झेन की देन

लेखक जापान की यात्रा पर गए हुए थे। वहाँ उन्होंने अपने एक मित्र से पूछा कि यहाँ के लोगों को कौन-सी बीमारियाँ सबसे अधिक होती हैं इसपर उनके मित्र ने जवाब दिया मानसिक। जापान के 80 फीसदी लोग मनोरोगी हैं। लेखक ने जब वजह जानना चाहा तो उनके मित्र ने बताया की जापानियों की जीवन की रफ़्तार बहुत बढ़ गयी है। लोग चलते नहीं, दौड़ते हैं। महीने का काम एक दिन में पूरा करने का प्रयास करते हैं। दिमाग में 'स्पीड' का इंजन लग जाने से हजार गुना अधिक तेजी से दौड़ने लगता है। एक क्षण ऐसा आता है जब दिमाग का तनाव बढ़ जाता है और पूरा इंजन टूट जाता है इस कारण मानसिक रोगी बढ़ गए हैं।

शाम को जापानी मित्र उन्हें 'टी-सेरेमनी' में ले गए। यह चाय पीने की विधि है जिसे चा-नो-यू कहते हैं। वह एक छः मंजिली इमारत थी जिसकी छत पर दफ़्ती की दीवारोंवाली और चटाई की ज़मीनवाली एक सुन्दर पर्णकुटी थी। बाहर बेढब-सा एक मिटटी का बरतन था जिसमे पानी भरा हुआ था जिससे उन्होंने हाथ-पाँव धोए। तौलिये से पोंछकर अंदर गए। अंदर बैठे 'चाजीन' ने उठकर उन्हें झुककर प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई। उसने अँगीठी सुलगाकर उसपर चायदानी रखी। बगल के कमरे से जाकर बरतन ले आया और उसे तौलिये से साफ़ किया। वह सारी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण तरीके से कर रहा था जिससे लेखक को उसकी हर मुद्रा में सुर गूँज हों। वातावरण इतना शांत था की चाय का उबलना भी साफ़ सुनाई दे रहा था।

चाय तैयार हुई और चाजीन ने चाय को प्यालों में भरा और उसे तीनो मित्रों के सामने रख दिया। शान्ति को बनाये रखने के लिए वहाँ तीन व्यक्तियों से ज्यादा को एक साथ प्रवेश नही दिया जाता। प्याले में दो घूँट से ज्यादा चाय नहीं थी। वे लोग ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद कर डेढ़ घंटे तक पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तक लेखक उलझन में रहे परन्तु फिर उनके दिमाग की रफ़्तार धीमी पड़ती गयी और फिर बिल्कुल बंद हो गयी। उन्हें लगा वो अनंतकाल में जी रहे हों। उन्हें सन्नाटे की भी आवाज़ सुनाई देने लगी।

अक्सर हम भूतकाल में जीते हैं या फिर भविष्य में परन्तु ये दोनों काल मिथ्या हैं। वर्तमान ही सत्य है और हमें उसी में जीना चाहिए। चाय पीते-पीते लेखक के दिमाग से दोनों काल हट गए थे। बस वर्तमान क्षण सामने था जो की अनंतकाल जितना विस्तृत था। असल जीना किसे कहते हैं लेखक को उस दिन मालूम हुआ ।

लेखक परिचय

रविन्द्र केलेकर

इनका जन्म 7 मार्च 1925 को कोंकण क्षेत्र में हुआ था। ये छात्र जीवन से ही गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए। गांधीवादी चिंतक के रूप में विख्यात केलेकर ने अपने लेखन में जन-जीवन के विविध पक्षों, मान्यताओं और व्यकितगत विचारों को देश और समाज परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है। इनकी अनुभवजन्य टिप्पणियों में अपनी चिंतन की मौलिकता के साथ ही मानवीय सत्य तक पहुँचने की सहज चेष्टा रहती है।

प्रमुख कार्य

कृतियाँ - कोंकणी में उजवाढाचे सूर, समिधा, सांगली ओथांबे, मराठी में कोंकणीचें राजकरण, जापान जसा दिसला और हिंदी में पतझड़ में टूटी पत्तियाँ
पुरस्कार - गोवा कला अकादमी के साहित्य पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• व्यावहारिकता - समय और अवसर देखकर काम करने की सूझ
• प्रैक्टिकल आईडियालिस्ट - व्यावहारिक आदर्श
• बखान - बयान करना
• सूझ-बुझ - काम करने की समझ
• स्तर - श्रेणी
• के स्तर - के बराबर
• सजग - सचेत
• शाश्वत - जो बदला ना जा सके
• शुद्ध सोना - बिना मिलावट का सोना
• गिन्नी का सोना - सोने में ताँबा मिला हुआ
• मानसिक - दिमागी
• मनोरुग्न - तनाव कर कारण मन से अस्वस्थ
• प्रतिस्पर्धा - होड़
• स्पीड - गति
• टी-सेरेमनी - जापान में चाय पिने का विशेष आयोजन
• चा-नो-यू - जापान में टी सेरेमनी का नाम
• दफ़्ती - लकड़ी की खोखली सड़कने वाली दीवार जिस पर चित्रकारी होती है
• पर्णकुटी - पत्तों से बानी कुटिया
• बेढब से - बेडौल सा
• चाजीन - जापानी विधि से चाय पिलाने वाला


Tuesday, 15 September 2015

अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुखी होने वाले - पठन सामग्री और सार NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुखी होने वाले स्पर्श भाग - 2

सारांश

इस पाठ में लेखक ने मानव द्वारों अपने स्वार्थ के लिए किये गए धरती पर किये गए अत्याचारों से अवगत कराया है। पाठ में बताया गया है की किस तरह मानव की न मिटने वाली भूख ने धरती के तमाम जीव-जन्तुओं के साथ खुद के लिए भी मुसीबत खड़ी कर दी है।

ईसा से 1025 वर्ष पहले एक बादशाह थे जिनका नाम बाइबिल के अनुसार सोलोमेन था, उन्हें कुरआन में सुलेमान कहा गया है। वह सिर्फ मानव जाति के ही राजा नहीं थे बल्कि सभी छोटे-बड़े पशु-पक्षी के भी राजा थे। वह इन सबकी भाषा जानते थे। एक बार वे अपने लश्कर के साथ रास्ते से गुजर रहे थे। उस रास्ते में कुछ चीटियाँ घोड़ों की टापों की आवाज़ें सुनकर अपने बिलों की तरफ वापस चल पड़ीं। इसपर सुलेमान ने उनसे घबराने को न कहते हुए कहा कि खुदा ने उन्हें सबका रखवाला बनाया है। वे मुसीबत नहीं हैं बल्कि सबके लिए मुहब्बत हैं। चीटियों ने उनके लिए दुआ की और वे आगे बढ़ चलें।

ऐसी एक घटना का जिक्र करते हुए सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज़ ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक दिन उनके पिता कुएँ से नहाकर घर लौटे तो माँ ने भोजन परोसा। जब उन्होंने रोटी का एक कौर तोड़ा तभी उन्हें अपनी बाजू पर एक काला च्योंटा रेंगता दिखाई दिया। वे भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए और पहले उस बेघर हुए च्योंटे को वापस उसके घर कुएँ पर छोड़ आये।

बाइबिल और अन्य ग्रंथों में नूह नामक एक पैगम्बर का जिक्र मिलता है जिनका असली नाम लशकर था परन्तु अरब में इन्हें नूह नाम से याद किया जाता है क्योंकि ये पूरी जिंदगी रोते रहे। एक बार इनके सामने से एक घायल कुत्ता गुजरा चूँकि इस्लाम में कुत्ते को गन्दा माना जाता है इसलिए इन्होनें उसे गंदे कुत्ते दूर हो जा कहा। कुत्ते ने इस दुत्कार को सुनकर जवाब दिया कि  ना मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ और ना तुम अपनी पसंद से इंसान हो। बनाने वाला सब एक ही है। इन बातों को सुनकर वे दुखी हो गए और सारी उम्र रोते रहे। महाभारत में भी एक कुत्ते ने युधिष्ठिर का साथ अंत तक दिया था।

भले ही इस संसार की रचना की अलग-अलग कहानियाँ हों परन्तु इतना तय है की धरती किसी एक की नहीं है। सभी जीव-जंतुओं, पशु, नदी पहाड़ सबका इसपर सामान अधिकार है। मानव इस बात को नहीं समझता। पहले उसने संसार जैसे परिवार को तोड़ा फिर खुद टुकड़ों में बँटकर एक-दूसरे से दूर हो चुका है। पहले लोग मिलजुलकर बड़े-बड़े दालानों-आंगनों में रहते थे पर अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में सिमटने लगे हैं। बढ़ती हुई आबादी के कारण समंदर को पीछे सरकाना पड़ रहा है, पेड़ों को रास्ते से हटाना पड़ रहा है जिस कारण फैले प्रदूषण ने पक्षियों को भागना शुरू कर दिया है। नेचर की भी सहनशक्ति होती है। इसके गुस्से का नमूना हम कई बार अत्यधिक गर्मी, जलजले, सैलाब आदि के रूप में देख रहे हैं।

लेखक की माँ कहती थीं की शाम ढलने पर पेड़ से पत्ते मत तोड़ो, वे रोयेंगे। दीया-बत्ती के वक़्त फूल मत तोड़ो। दरिया पर जाओ तो सलाम करो कबूतरों को मत सताया करो और मुर्गे को परेशान मत करो वह अज़ान देता है। लेखक बताते हैं उनका ग्वालियर में मकान था। उस मकान के दालान के रोशनदान में कबूतर के एक जोड़े ने अपना घोंसला बना लिया। एक बिल्ली ने उचककर दो में से एक अंडा फोड़ दिया। लेखक की माँ से दूसरा अंडा बचाने के क्रम में फूट गया। इसकी माफ़ी के लिए उन्होंने दिन भर कुछ नहीं खाया और नमाज़ अदा करती रहीं।

अब लेखक मुंबई के वर्सोवा में रहते हैं। पहले यहाँ पेड़, परिंदे और दूसरे जानवर रहते थे परन्तु अब यह शहर बन चुका है। दूसरे पशु-पक्षी इसे छोड़े कर जा चुके हैं, जो नहीं गए वे इधर-उधर डेरा डाले रहते हैं। लेखक के फ्लैट में भी दो कबूतरों ने एक मचान पर अपना घोंसला बनाया, बच्चे अभी छोटे थे। खिलाने-पिलाने की जिम्मेदारी बड़े कबूतरों पर थीं। वे दिन-भर आते जाते रहते थे। लेखक और उनकी पत्नी को इससे परेशानी होती इसलिए उन्होंने जाली लगाकर उन्हें बाहर कर दिया। अब दोनों कबूतर खिड़की के बाहर बैठे उदास रहते हैं परन्तु अब ना सुलेमान हैं न लेखक की माँ जिन्हें इनकी फ़िक्र हो।

लेखक परिचय

निदा फ़ाज़ली

इनका जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ और बचपन ग्वालियर में बिता। ये साठोत्तर पीढ़ी के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। आम बोलचाल की भाषा में और सरलता से किसी के भी दिलोदिमाग में घर कर सकें ऐसी कविता करने में इन्हें महारत हासिल है। गद्य रचनाओं में शेर-ओ-शायरी परोसकर बहुत कुछ को थोड़े में कह देने वाले अपने किस्म के अकेले गद्यकार हैं। इन दिनों फिल्म उद्योग से सम्बन्ध हैं।

प्रमुख कार्य

पुस्तक - लफ्जों का पुल, खोया हुआ सा कुछ, तमाशा मेरे आगे
आत्मकथा - दीवारों के बीच, दीवारों के पार
पुरस्कार - खोया हुआ सा कुछ के लिये 1999 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• हाकिम - राजा या मालिक
• लश्कर (लशकर) - सेना या विशाल जनसमुदाय
• लक़ब - पदसूचक नाम
• प्रतीकात्मक - प्रतीकस्वरुप
• दालान - बरामदा
• सिमटना - सिकुड़ना
• जलजले - भूकम्प
• सैलाब - बाढ़
• सैलानी - ऐसे पर्यटक जो भ्रमण कर नए-नए विषयों के बारे में जानना चाहते हैं
• अज़ीज़ - प्रिय
• मज़ार - दरगाह
• गुंबद - मस्जिद, मंदिर और गुरुद्वारे के ऊपर बनी गोल छत जिसमें आवाज़ गूँजती है
• अज़ान - नमाज़ के समय की सूचना जो मस्जिद की छत या दूसरी ऊँचे जगह पर खड़े होकर दी जाती है
• डेरा - अस्थायी पड़ाव


Thursday, 10 September 2015

गिरगिट - पठन सामग्री और सार NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - गिरगिट स्पर्श भाग - 2

सारांश

यह पाठ समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार पर एक व्यंग्य है। यह एक पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा बताता है की व्यक्ति किस तरह अपने पद का दुरूपयोग अपने स्वार्थ के लिए करता है।

इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव नया ओवरकोट पहने हाथ में बंडल लिए बाज़ार के चौराहे से गुजरा। उसके पीछे लाल बालोंवाला एक सिपाही हाथों में झरबेरी की टोकरियाँ लिए चला आ रहा था। चारों ओर खामोशी थी। दुकानों के दरवाजे खुले थे परन्तु उनके आसपास कोई नहीं दिख रहा था।

तभी अचानक ओचुमेलॉव के कानों में एक आवाज़ गूँजी - 'तो तू काटेगा? तू? शैतान कहीं का! ओ छोकरों! इसे मत जाने दो। पकड़ लो इस कुत्ते को। उसके बाद उसे कुत्ते की किकियाने की आवाज़ सुनाई दी। ओचुमेलॉव उस आवाज़ की दिशा में घुमा और पाया कि एक व्यापारी पिचुगिन के काठगोदाम में से एक कुत्ता तीन टाँगों के बल पर रेंगता चला आ रहा है। उसके पीछे एक व्यक्ति दौड़ रहा था। वह कुत्ते की टांगें पकड़कर फिर चीखा - 'मत जाने दो।' आवाज़ सुनकर भीड़ काठगोदाम घेरकर खड़ी हो गयी। ओचुमेलॉव भी मुड़कर भीड़ की तरफ चल दिया।

वहाँ एक बिना बटन वास्केट पहने आदमी अपना दायाँ हाथ उठाये मौजूद था और उपस्थित लोगों को उंगलियाँ दिखा रहा था। ओचुमेलॉव ने व्यक्ति को देखते पहचान लिया। वह ख्यूक्रिन नामक सुनार था। वहीँ पास में पड़ा एक सफ़ेद बाराजोई पिल्ला ऊपर से नीचे तक काँप रहा था। भीड़ को चीरते हुए ओचुमेलॉव ने पूछा - यह सब क्या हो रहा है? तुम सब लोग इधर क्या कर रहे हो?  ऊँगली ऊपर क्यों उठा रखी है? चिल्ला कौन रहा था? इन सवालों के जवाब में ख्यूक्रिन ने खाँसते हुए कहा की जब मैं मित्री मित्रिच से लकड़ी लेकर कुछ काम निपटाने के लिए चुपचाप चला जा रहा था तब इस कुत्ते ने अकारण मेरी ऊँगली काट खाई। चूँकि मेरा काम पेचीदा है और मुझे लगता है अब एक हफ्ते तक मेरी ऊँगली काम नहीं कर पाएगी इसलिए हुजूर मुझे इस कुत्ते के मालिक से हरजाना दिलवाया जाए। यह किसी कानून में नही लिखा की आदमखोर जानवर हमें काट खायें और हम इन्हें छोड़ते रहें।

ओचुमेलॉव ने अपना गला खँखारते हुए बोला की ठीक है बताओ यह कुत्ता किसका है। मैं इस मामले को छोड़ने वाला नही हूँ। इस तरह अपने कुत्ते को आवारा छोड़ने वाले मालिक को मैं मजा चखा कर रहूँगा। उसने सिपाही की तरफ मुड़कर कहा - येल्दीरीन पता लगाओ यह कुत्ता किसका है और पूरी रिपोर्ट तैयार करो। इस कुत्ते को मार दो। तभी भीड़ से एक आवाज़ आई शायद यह कुत्ता जनरल झिगालॉव का है।

जनरल झिगालॉव का नाम सुनते ही ओचुमेलॉव को गर्मी लगने लगती है और वह कोट उतारने लगता है। वह ख्यूक्रिन की तरफ मुड़कर कहता है की मुझे समझ नहीं आ रहा की इतना छोटा जानवर तेरी ऊँगली तक पहुँचकर काट कैसे सकता है। जरूर तेरे ऊँगली में कील गड गई होगी और तू यह दोष इस कुत्ते पर मढ़कर अपना फयदा सोच रहा है। जरूर इसने ही कुत्ते के साथ शरारत की होगी। सिपाही येल्दीरीन भी ओचुमेलॉव की बातों में हाँ मिलाते हुए ख्यूक्रिन को शरारती बताता है। ख्यूक्रिन भी कहता है की उसका एक भाई पुलिस में है।

थोड़ी देर में सिपाही कहता है की यह कुत्ता जनरल साहब को नहीं हो सकता क्योंकि उनके सभी कुत्ते पोंटर हैं। ओचुमेलॉव भी कहता है की जनरल साहब के सभी कुत्ते महँगे और अच्छी नस्ल के हैं। यह मरियल सा कुत्ता उनका नहीं हो सकता। इसे सबक सिखाना जरूरी है। सिपाही गंभीरता से सोचते हुए फिर कहता है ऐसा कुत्ता कल ही मैंने जनरल साहब के आँगन में देखा था शायद यह कुत्ता उन्हीं का हो। भीड़ में से भी आवाज़ आती है यह कुत्ता जनरल साहब का ही है। अब ओचुमेलॉव को ठंड लगने लगती है और  वह सिपाही को कोट पहनाने में मदद करने बोलता है। वह बोलता है जनरल साहब के पास ले जाकर पता लगाओ की यह कुत्ता उनका है और उनसे कहना मैंने इसे उनके पास भेजा है। इस तरह इस नाजुक प्राणी को बाहर ना छोड़ें नहीं तो गुंडे-बदमाशों के हाथों यह तबाह हो जाएगा। वह ख्यूक्रिन को भद्दा प्राणी कहते हुए उसे ऊँगली नीचे करने को कहता है।

तभी उधर से जनरल साहब को बावर्ची प्रोखोर आता दिखता है। ओचुमेलॉव उसे आवाज़ देकर बुलाता है और पूछता है की कुत्ता जनरल साहब का है? बावर्ची कहता है की ऐसा कुत्ता उसने कई जिंदगियों में नहीं देखा। तभी ओचुमेलॉव कहता है की मैंने तो पहले ही कहा था इस आवारा कुत्ते को मार दिया जाए। बावर्ची फिर कहता है की यह कुत्ता जनरल साहब का तो नहीं परन्तु उनके भाई है जो अभी यहाँ पधार हैं। उन्हें 'बारजोयस' नस्ल के कुत्ते पसंद हैं। ओचुमेलॉव ने अपने चेहरे पर ख़ुशी समेटते हुए कहा की जनरल साहब के भाई वाल्दीमीर इवानिच पधारे हैं और मुझे पता तक नहीं। कितना सुन्दर डॉगी है। बहुत खूबसूरत पिल्ला है। प्रोखोर कुत्ते को संभालकर काठगोदाम से बाहर चला गया। भीड़ ख्यूक्रिन की हालत पर हँस दी। ओचुमेलॉव ने उसे धमकाकर अपने रास्ते चल दिया।

लेखक परिचय

अंतोन चेखव

इनका जन्म दक्षिणी रूस के तगनोर नगर में 1860 में हुआ था। इन्होनें शिक्षा काल से ही कहानियाँ लिखना आरम्भ कर दिया था। उन्नीसवीं सदी का नौवाँ दशक रूस के लिए कठिन समय था। तह वह समय था जब आज़ाद ख्याल होने से ही लोग शासन के दमन का करते थे। ऐसे समय में चेखव ने उन मौकापरस्त लोगों को बेनकाब करती कहानियाँ लिखीं जिनके लिए पैसा और पद ही सब कुछ था।

प्रमुख कार्य

कहानियाँ - गिरगिट, क्लर्क की मौत, वान्का, तितली, एक कलाकार की कहानी, घोंघा, ईओनिज, रोमांस, दुलहन।
नाटक - वाल्या मामा, तीन बहनें, सीगल और चेरी का बगीचा।

कठिन शब्दों के अर्थ

• जब्त - कब्ज़ा करना
• झरबेरियाँ - बेर की एक किस्म
• किकियाना - कष्ट में होने पर कुत्ते द्वारा की जाने वाली आवाज़
• काठगोदाम - लकड़ी का गोदाम
• कलफ़ - मांड लगाया गया कपड़ा
• बारजोयस - कुत्ते की एक प्रजाति
• पेचीदा - कठिन
• गुज़ारिश - प्रार्थना
• हरज़ाना - नुक्सान के बदले में दी जाने वाली रकम
• बरदाश्त - सहना
• खँखारते - खाँसते हुए
• त्योरियाँ - भौंहें चढ़ाना
• विवरण - ब्योरा देना
• भद्दा - कुरूप
• नस्ल - जाति
• आल्हाद - ख़ुशी


Sunday, 6 September 2015

तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेन्द्र - पठन सामग्री और सार NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेन्द्र स्पर्श भाग - 2

सारांश

इस पाठ में लेखक ने गीतकार शैलेन्द्र और उनके द्वारा निर्मित पहली और आखिरी फिल्म तीसरी कसम के बारे में बताया है।

जब राजकपूर की की फिल्म संगम सफल रही तो इसने उनमें गहन आत्मविश्वास भर दिया जिस कारण उन्होंने एक साथ चार फिल्मों - 'मेरा नाम जोकर' , 'अजंता' , 'मैं और मेरा दोस्त' , सत्यम शिवम सुंदरम' के निर्माण की घोषणा की। परन्तु जब 1965 में उन्होंने 'मेरा नाम जोकर' का निर्माण शुरू किया तो इसके एक भाग के निर्माण में छह वर्ष लग गए। इन छह वर्षों के बीच उनके द्वारा अभिनीत कई फ़िल्में प्रदर्शित हुईं जिनमें सन् 1966 में प्रदर्शित कवि शैलेन्द्र की 'तीसरी कसम' फिल्म भी शामिल है। इस फिल्म में हिंदी साहित्य की अत्यंत मार्मिक कथा कृति को सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा गया है। यह फिल्म नहीं बल्कि सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।

इस फिल्म को 'राष्ट्रपति स्वर्णपदक' मिला, बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फिल्म और कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में भी यह फिल्म पुरस्कृत हुई। इस फिल्म में शैलेन्द्र ने अपनी संवेदनशीलता को अच्छी तरह से दिखाया है और राजकपूर का अभिनय भी उतना ही अच्छा है। इस फिल्म के लिए राजकपूर ने शैलेन्द्र से केवल एक रूपया लिया। राजकपूर ने यह फिल्म बनने से पहले शैलेन्द्र को फिल्म की असफलताओं से भी आगाह किया था परन्तु फिर भी शैलेन्द्र ने यह फिल्म बनायीं क्योंकि उनके लिए धन-संपत्ति से अधिक महत्वपूर्ण अपनी आत्मसंतुष्टि थी। महान फिल्म होने पर भी तीसरी कसम को प्रदर्शित करने के लिए बहुत मुश्किल से वितरक मिले। बावजूद इसके कि फिल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे सितारें थे, शंकर जयकिशन का संगीत था। फिल्म के गाने पहले ही लोकप्रिय हो चुके थे लेकिन फिल्म को खरीदने वाला कोई नहीं था क्योंकि फिल्म की संवेदना आसानी से समझ आने वाली ना थी। इसलिए फिल्म का प्रचार भी काम हुआ और यह कब आई और गयी पता भी ना चला।

शैलेन्द्र बीस सालों से इंडस्ट्री में थे और उन्हें वहाँ के तौर-तरीके भी मालूम थे परन्तु वे इनमें उलझकर अपनी आदमियत नहीं खो सके थे। 'श्री 420' के एक लोकप्रिय गीत 'दसों दिशायें कहेंगी अपनी कहानियाँ' पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति करते हुए कहा की दर्शक चार दिशायें तो समझ सकते हैं परन्तु दस नहीं। शैलेन्द्र गीत बदलने को तैयार नही थे। उनका मानना था की दर्शकों की रूचि के आड़ में हमें उनपर उथलेपन को नहीं थोपना चाहिए। शैलेन्द्र ने झूठे अभिजात्य को कभी नहीं अपनाया। वे एक शांत नदी के प्रवाह और समुद्र की गहराई लिए व्यक्ति थे।

'तीसरी कसम' फिल्म उन चुनिंदा फिल्मों में से है जिन्होनें साहित्य-रचना से शत-प्रतिशत न्याय किया है। शैलेंद्र ने राजकपूर जैसे स्टार को हीरामन बना दिया था और छींट की सस्ती साड़ी में लिपटी 'हीराबाई' ने वहीदा रहमान की प्रसिद्ध ऊचाईयों को बहुत पीछे छोड़ दिया था। यह फिल वास्तविक दुनिया का पूरा स्पर्श कराती है। इस फिल्म में दुःख का सहज चित्रण किया गया है। मुकेश की आवाज़ में शैलेन्द्र का गीत - सजनवा बैरी हो गए हमार चिठिया हो तो हर कोई बाँचै भाग ना बाँचै कोय... अदिव्तीय बन गया।

अभिनय की दृष्टि से यह राजकपूर की जिंदगी का सबसे हसीन फिल्म है। वे इस फिल्म में मासूमियत की चर्मोत्कर्ष को छूते हैं। 'तीसरी कसम' में राजकपूर ने जो अभिनय किया है वो उन्होंने 'जागते रहो' में भी नहीं किया है। इस फिल्म में ऐसा लगता है मानो राजकपूर अभिनय नही कर रहा है, वह हीरामन ही बन गया है।   राजकपूर के अभिनय-जीवन का वह मुकाम है जब वह एशिया के सबसे बड़े शोमैन के रूप में स्थापित हो चुके थे।

तीसरी कसम पटकथा मूल कहानी के लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने स्वयं लिखी थी। कहानी का हर अंश फिल्म में पूरी तरह स्पष्ट थीं।

लेखक परिचय

प्रहलाद अग्रवाल

इनका जन्म 1947 मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ। इन्होनें हिंदी से एम.ए की शिक्षा हासिल की। इन्हें किशोर वय  से ही हिंदी फिल्मों के इतिहास और फिल्मकारों के जीवन और अभिनय के बारे में विस्तार से जानने और उस पर चर्चा करने का शौक रहा। इन दिनों ये सतना के शासकीय स्वसाशी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रध्यापन कर रहे हैं और फिल्मों के विषय में बहुत कुछ लिख चुके हैं और आगे भी इसी क्षेत्र में लिखने को कृत संकल्प हैं।

प्रमुख कार्य

प्रमुख कृतियाँ - सांतवाँ दशक, तानशाह, मैं खुशबू, सुपर स्टार, राज कपूर: आधी हकीकत आधा फ़साना, कवि शैलन्द्र: जिंदगी की जीत में यकीन, पप्यासा: चिर अतृप्त गुरुदत्त, उत्ताल उमंग: सुभाष घई की फिल्मकला, ओ रे माँझी: बिमल राय का सिनेमा और महाबाजार के महानायक: इक्कीसवीं सदी का सिनेमा।

कठिन शब्दों के अर्थ

• अंतराल - के बाद
• अभिनीत - अभिनय किया गया
• सर्वोत्कृष्ट - सबसे अच्छा
• सैल्यूलाइड - कैमरे की रील में उतार चित्र पर प्रस्तुत करना
• सार्थकता - सफलता के साथ
• कलात्मकता - कला से परिपूर्ण
• संवेदनशीलता - भावुकता
• शिद्दत - तीव्रता
• अनन्य - परम
• तन्मयता - तल्लीनता
• पारिश्रमिक - मेहनताना
• याराना मस्ती -दोस्ताना अंदाज़
• आगाह - सचेत
• नामज़द - विख्यात
• नावाकिफ - अनजान
• इकरार - सहमति
• मंतव्य - इच्छा
• उथलापन - नीचा
• अभिजात्य - परिष्कृत
• भाव-प्रवण - भावों से भरा हुआ
• दूरह - कठिन
• उकडू - घुटनों से मोड़ कर पैर के तलवों के सहारे बैठना
• सूक्ष्मता - बारीकी
• स्पंदित - संचालित करना
• लालायित - इच्छुक
• टप्पर-गाडी - अर्ध गोलाकार छप्परयुक्त बैलगाड़ी
• लोक-तत्व -लोक सम्बन्धी
• त्रासद - दुःख
• ग्लोरिफाई - गुणगान
• वीभत्स - भयावह
• जीवन-सापेक्ष - जीवन के प्रति
• धन-लिप्सा - धन की अत्यधिक चाह
• प्रक्रिया - प्रणाली
• बाँचै - पढ़ना
• भाग -भाग्य
• भरमाये - भम्र होना
• समीक्षक - समीक्षा करने वाला
• कला-मर्मज्ञ - कला की परख करने वाला
• चर्मोत्कर्ष - ऊँचाई के शिखर पर
• खालिस - शुद्ध
• भुच्च - निरा
• किंवदंती - कहावत

Wednesday, 2 September 2015

तताँरा-वामीरो कथा - पठन सामग्री और सार NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - तताँरा-वामीरो कथा स्पर्श भाग - 2

सारांश

यह पाठ अंदमान निकोबार द्वीपसमूह के एक प्रचलित लोककथा पर आधरित है। अंदमान निकोबार दक्षिणी द्वीप लिटिल अंदमान है जो की पोर्ट ब्लेयर से लगभग सौ किलोमीटर दूर स्थित है। इसके बाद निकोबार द्वीपसमूह का पहला प्रमुख द्वीप कार-निकोबार है जो की लिटिल अंदमान से 96 कि.मी. दूर है। पौराणिक जनश्रुति के अनुसार ये दोनों द्वीप पहले एक ही थे। इनके अलग होने के पीछे एक लोककथा आज भी प्रचलित है।

जब दोनों द्वीप एक थे तब वहां एक सुन्दर सा गाँव था जहाँ एक सुन्दर और शक्तिशाली युवक रहा करता था जिसका नाम तताँरा था। वह एक नेक और ईमानदार व्यक्ति था और सदा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहता था। निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। वह अपने गाँव के लोगों के साथ सारे द्वीप की भी सेवा करता था। वह पारंपरिक पोशाक में रहने के साथ अपनी कमर में सदा एक लकड़ी की तलवार बाँधे रहता था। वह कभी तलवार का उपयोग नही करता था, लोगों का मत था की तलवार में दैवीय शक्ति थी।

एक शाम तताँरा दिनभर के अथक परिश्रम के बाद समुद्र के किनारे टहलने निकल पड़ा। सूरज डूबने को था, समुद्र से ठंडी बयारें आ रहीं थीं। पक्षियाँ अपने घरों को वापस जा रहीं थीं। तताँरा सूरज की अंतिम किरणों को समुद्र पर निहारा रहा था तभी उसे कहीं पास से एक मधुर गीत गूँजता सुनाई दिया  सुध-बुध खोने लगा। लहरों की एक प्रबल वेग ने उसे जगाया। वह जिधर से गीत के स्वर आ रहे थे उधर बढ़ता गया। उसकी नजर एक युवती पर पड़ी जो की वह श्रृंगार गीत गा रही थी। अचानक एक समुद्री लहर उठी और युवती को भिगों दिया जिसके हड़बड़ाहट में वह अपना गाना भूल गयी। तताँरा ने विनम्रतापूर्वक उसके मधुर गायन छोड़ने के पीछे वजह पूछी। युवती उसे देखकर चौंक गयी और ऐसे असंगत प्रश्न का कारण पूछने लगी। तताँरा उससे बार-बार गाने को बोल रहा था। अंत में तताँरा को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने क्षमा माँगकर उसका नाम पूछा। उसने अपना नाम वामीरो बताया। तताँरा ने उसे अपना नाम बताते हुए कल फिर आने का आग्रह किया।

वामीरो जब अपने घर लपाती पहुँची तो उसे भीतर से बैचैनी होने लगी। उसने तताँरा के व्यक्तित्व में वह सारा गुण पाया जो की वह अपने जीवन साथी के बारे में सोचती थी परन्तु उनका संबंध परंपरा के विरुद्ध था इसलिए उसने तताँरा को भूलना ही बेहतर समझा। किसी तरह दोनों की रात बीती। दूसरे दिन तताँरा लपाती के समुद्री चट्टान पर शाम में वामीरो की प्रतीक्षा करने लगा। सूरज ढलने को था सहसा तभी उसे नारियल के झुरमुठों के बीच एक आकृति दिखाई दी जो की वामीरो ही थी। अब दोनों रोज शाम में मिलते और एक दूसरे को एकटक निहारते खड़े रहते। लपाती के कुछ युवकों ने उन दोनों के इस मूक प्रेम को भाँप लिया और यह बात हवा की  तरह सबको मालूम हो गयी। परन्तु दोनों का विवाह संभव ना था क्योंकि दोनों अलग-अलग गाँव से थे। सबने दोनों को समझाने का पूरा प्रयास किया किन्तु दोनों अडिग रहे और हर शाम मिलते रहे।

कुछ समय बाद तताँरा के गाँव पासा में पशु-पर्व का आयोजन था जिसमें सभी गाँव हिस्सा लिया करते। पर्व में पशुओं के प्रदर्शन के के अतिरिक्त युवकों की भी शक्ति परीक्षा होती साथ ही गीत-संगीत और भोजन का भी आयोजन होता। शाम में सभी लोग पासा आने लगे और धीरे-धीरे विभिन्न कार्यक्रम होने लगे परन्तु तताँरा का मन इनमें ना होकर वामीरो को खोजने में व्यस्त था। तभी उसे नारियल के झुंड के पीछे वामीरो दिखाई दी। वह तताँरा को देखते ही रोने लगी। तताँरा विह्वल हुआ। रुदन का स्वर सुनकर वामीरो की माँ वहां पहुँच गयीं और उसने तताँरा को बुरा-भला कहकर अपमानित किया। गाँव के लोग भी तताँरा के विरोध में आवाज उठाने लगे। यह तताँरा के लिए असहनीय था। उसे परंपरा पर क्षोभ हो रहा था और अपनी असहायता पर गुस्सा। अचानक उसका हाथ तलवार की मूठ पर जा टिका और क्रोध में उसने अपनी तलवार निकालकर धरती में घोंप दिया और अपनी पूरी ताकत लगाकर खींचने लगा। जहाँ से लकीर खींची थी वहाँ से धरती में दरार आने लगी। द्वीप के दो टुकड़े हो चुके थे एक तरफ तताँरा था और दूसरी तरफ वामीरो। दूसरा द्वीप धँसने लगा। तताँरा को जैसे ही होश आया उसने दूसरे द्वीप का कूद कर सिरा पकड़ने की कोशिश की परन्तु सफल ना हो सका और नीचे की तरफ फिसलने लगा। दोनों के मुँह से एक दूसरे के  चीख निकल रही थी।

तताँरा लहूलुहान अचेत पड़ा था। बाद में उसका क्या हुआ कोई नहीं जानता। इधर वामीरो पागल हो गयी और उसने खाना-पीना छोड़ दिया। लोगों ने तताँरा को खोजने का बहुत प्रयास किया परन्तु वह नही मिला। आज ना तताँरा है ना वामीरो परन्तु उनकी प्रेमकथा घर-घर में  सुनाई जाती है। इस घटना के निकोबारी एक दूसरे गाँवों में वैवाहिक संबंध स्थापित करने लगे। तताँरा की तलवार से कार-निकोबार से जो दो टुकड़े उसमें दूसरा लिटिल अंदमान है।

लेखक परिचय

लीलाधर मंडलोई

इनका जन्म 1954 को जन्माष्टमी के दिन छिंदवाड़ा जिले के एक छोटे से गाँव गुढ़ी में हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भोपाल और रायपुर में हुई। प्रसारण की उच्च शिक्षा के लिए 1987 में कॉमनवेल्थ रिलेशंस ट्रस्ट, लंदन की ओर से आमंत्रित किये गए। इन दिनों प्रसार भारती दूरदर्शन के महानिदेशक का कार्यभार संभाल रहे हैं।

प्रमुख कार्य

कृतियाँ - घर-घर घूमा, रात-बिरात, मगर एक आवाज़, देखा-अनदेखा और काला पानी।

कठिन शब्दों के अर्थ

• श्रृंखला - कम्र
• आदिम - प्रारम्भिक
• विभक्त - बँटा हुआ
•  लोककथा - जन-समाज में प्रचलित कथा
• आत्मीय - अपना
• विलक्षण - साधारण
• बयार - शीतल मंद हवा
• तंद्रा -ऊँघ
• चैतन्य - चेतना
• विकल - बैचैन
• संचार - उत्पन्न होना
• असंगत - अनुचित
• सम्मोहित - मुग्ध
• झुंझुलाना - चिढ़ना
• अन्यमनस्कता - जिसका चित्त कहीं और हो
• निनिर्मेष - बिना पलक झपकाये
• अचम्भित - चकित
• रोमांचित - पुलकित
• निश्चल - स्थिर
• अफवाह - उड़ती खबर
• उफनना - उबलना
• शमन - शांत करना
• घोंपना - भोंकना

Thursday, 27 August 2015

डायरी का एक पन्ना - पठन सामग्री और सार NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - डायरी का एक पन्ना स्पर्श भाग - 2

सारांश

इस पाठ में लेखक सीताराम सेकसरिया ने 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में मनाए गए स्वतंत्रता दिवस का विवरण प्रस्तुत किया है। लेखक ने बताया है की भारत में स्वतंत्रता दिवस पहली बार 26 जनवरी 1930 में मनाया गया था परन्तु उस साल कोलकाता की स्वतंत्रता दिवस में ज्यादा हिस्सेदारी नही थी परन्तु इस साल पूरी तैयारियाँ की गई थीं। केवल प्रचार में दो हजार रूपए खर्च किये गए थे। लोगों को घर-घर जाकर समझाया गया।

बड़े बाजार के प्रायः मकानों पर तिरंगा फहराया गया था। कलकत्ता के हर भाग में झंडे लगाये गए थे, ऐसी सजावट पहले कभी नही हुई थी। पुलिस भी प्रत्येक मोड़ में तैनात होकर अपनी पूरी ताकत से गश्त दे रही थी। घुड़सवारों का भी प्रबंध था।

मोनुमेंट के नीचे जहाँ सभा होने वाली थी उस जगह को पुलिस ने सुबह छः बजे ही घेर लिया फिर भी कई जगह सुबह में ही झंडा फहराया गया। श्रद्धानंद पार्क में बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने जब झंडा गाड़ा तब उन्हें पकड़ लिया। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा-बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह को झंडा फहराने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया। वहाँ मारपीट भी हुई जिसमे दो-चार लोगों के सिर फट गए तथा गुजरात सेविका संघ की ओर से निकाले गए जुलुस में कई लड़कियों को गिरफ्तार किया गया।

मारवाड़ी बालिका विद्यालय की लड़कियों ने 11 बजे झंडा फहराया। जगह- जगह उत्सव और जुलुस के फोटो उतारे गए। दो-तीन कई आदमियों को पकड़ लिया गया जिनमें पूर्णोदास और परुषोत्तम राय प्रमुख थे। सुभाष चन्द्र बोस के जुलुस का भार पूर्णोदास पर था।

स्त्री समाज भी अपना जुलुस निकालने और ठीक स्थान पर पहुँचनें की कोशिश कर रहीं थीं। तीन बजे से ही मैदान में भीड़ जमा होने लगी और लोग टोलियां बनाकर घूमने लगे। इतनी बड़ी सभा कभी नही की गयी थी पुलिस कमिश्नर के नोटिस के आधार पर अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती थी और भाग लेने वाले व्यक्तियों को दोषी समझा जाएगा। कौंसिल के नोटिस के अनुसार चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाना था और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जानी थी।

ठीक चार बजे सुभाष चन्द्र बोस जुलुस के साथ आए। भीड़ ज्यादा होने की वजह से पुलिस उन्हें रोक नही पायी। पुलिस ने लाठियां चलायीं, कई लोग घायल हुए और सुभाष बाबू पर भी लाठियां पड़ीं। वे जोर से 'वन्दे मातरम्' बोल रहे थे और आगे बढ़ते रहे। पुलिस भयानक रूप से लाठियां चला रहीं थी जिससे क्षितीश चटर्जी का सिर फैट गया था। उधर स्त्रियां मोनुमेंट की सीढियाँ चढ़कर झंडा फहरा रही थीं। सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाडी में बैठाकर लॉकअप भेज दिया गया।

कुछ देर बाद वहाँ से स्त्रियां जुलुस बनाकर चलीं और साथ में बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी। पुलिस ने डंडे बरसाने शुरू कर दिए जिससे बहुत आदमी घायल हो गए। धर्मतल्ले के मोड़ के पास आकर जुलुस टूट गया और करीब 50-60 महिलाएँ वहीँ बैठ गयीं जिसे पुलिस से पकड़कर लालबाजार भेज दिया। स्त्रियों का एक भाग आगे विमला देवी के नेतृत्व में आगे बढ़ा जिसे बहू बाजार के मोड़ पर रोक गया और वे वहीँ बैठ गयीं। डेढ़ घंटे बाद एक लारी में बैठाकर लालबाजार ले जाया गया।

वृजलाल गोयनका को पकड़ा गया और मदालसा भी पकड़ी गयीं। सब मिलाकर 105 स्त्रियां पकड़ी गयीं थीं जिन्हें बाद में रात 9 बजे छोड़ दिया गया। कलकत्ता में आज तक एक साथ इतनी ज्यादा गिरफ्तारी कभी नहीं हुई थी। करीब दो सौ लोग घायल हुए थे। पकड़े गए आदमियों की संख्या का पता नही चला पर लालबाजार के लॉकअप में स्त्रियों की संख्या 105 थी। आज का दिन कलकत्तावासियों के लिए अभूतपूर्व था। आज वो कलंक धुल गया की कलकत्तावासियों की यहाँ काम नही हो सकता।

लेखक परिचय

सीताराम सेकसरिया

इनका जन्म 1892 में राजस्थान के नवलगढ़ में हुआ परन्तु अधिकांश जीवन कलकत्ता में बिता। ये व्यापार से जुड़े होने के साथ अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक और नारी शिक्षण संस्थाओं के प्रेरक, संस्थापक और संचालक रहे। महात्मा गांधी के आह्वाहन पर ये स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े। कुछ साल तक ये आजाद हिंद फ़ौज के मंत्री भी रहे। इन्होने स्वाध्याय से पढ़ना-लिखना सीखा।

प्रमुख कार्य

कृतियाँ - स्मृतिकण, मन की बात, बिता युग, नयी याद और दो भागों में एक कार्यकर्ता की डायरी।
पुरस्कार - पद्मश्री पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• पुनरावृति - फिर से आना
• गश्त - पुलिस कर्मचारी का पहरे के लिए घूमना
• सार्जेंट - सेना में एक पद
• मोनुमेंट - स्मारक
• कौंसिल - परिषद
• चौरंगी - कलकत्ता के एक शहर का नाम
• वालेंटियर - स्वयंसेवक
• संगीन - गंभीर
• मदालसा - जानकी देवी और जमना लाल बजाज की पुत्री का नाम

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Thursday, 20 August 2015

बड़े भाई साहब - पठन सामग्री और सार NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - बड़े भाई साहब स्पर्श भाग - 2

सारांश

(1)
लेखक प्रेमचंद ने इस पाठ में अपने बड़े भाई के बारे में बताया है जो की उम्र में उनसे पाँच साल बड़े थे परन्तु पढाई में केवल तीन कक्षा आगे। लेखक स्पष्टीकरण देते हुए कहते हैं ऐसा नहीं है की उन्होंने बाद में पढ़ाई शुरू की बल्कि वे चाहते थे की उनका बुनियाद मजबूत हो इसलिए एक साल का काम दो-तीन साल में करते यानी उनके बड़े भाई कक्षा पास नही कर पाते थे। लेखक की उम्र नौ साल थी और उनके भाई चौदह साल के थे। वे लेखक की पूरी निगरानी रखते थे जो की उनका जन्मसिद्ध अधिकार था।
बड़े भाई स्वभाव से बड़े अध्यनशील थे, हमेशा किताब खोले बैठे रहते। समय काटने के लिए वो कॉपियों पर तथा किताब के हाशियों पर चित्र बनाया करते, एक चीज़ को बार-बार लिखते। दूसरी तरफ लेखक का मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता। अवसर पाते ही वो हॉस्टल से निकलकर मैदान में खेलने आ जाते। खेलकूद कर जब वो वापस आते तो उन्हें बड़े भाई के रौद्र रूप के दर्शन होते। उनके भाई लेखक को डाँटते हुए कहते कि पढ़ाई इतनी आसान नही है, इसके लिए रात-दिन आँख फोड़नी पड़ती है खून जलाना पड़ता है तब जाकर यह समझ में आती है। अगर तुम्हें इसी तरह खेलकर अपनी समय गँवानी है तो बेहतर है की घर चले जाओ और गुल्ली-डंडा खेलो। इस तरह यहाँ रहकर दादा की गाढ़ी कमाई के रूपए क्यों बरबाद करते हो? ऐसी लताड़ सुनकर लेखक रोने लगते और उन्हें लगता की पढ़ाई का काम उनके बस का नहीं है परन्तु दो-तीन निराशा हटती तो फटाफट पढाई-लिखाई की कठिन टाइम-टेबिल बना लेते जिसका वो पालन नहीं कर सकते। खेल-कूद के मैदान उन्हें बाहर खिंच ही लाते। इतने फटकार के बाद भी वो खेल में शामिल होते रहें।

(2)
सालाना परीक्षा में बड़े भाई फिर फेल हो गए और लेखक अपनी कक्षा में प्रथम आये। उन दोनों के बीच अब दो कक्षा की दूरी रह गयी। लेखक के मन में आया की वह भाई साहब को आड़े हाथों लें परन्तु उन्हें दुःखी देखकर लेखक ने इस विचार को त्याग दिया और खेल-कूद में फिर व्यस्त हो गए। अब बड़े भाई का लेखक पर ज्यादा दबाव ना था।
एक दिन लेखक भोर का सारा समय खेल में बिताकर लौटे तब भाई साहब ने उन्हें जमकर डाँटा और कहा कि अगर कक्षा में अव्वल आने पर घमंड हो गया है तो यह जान लो की बड़े-बड़े आदमी का भी घमंड नही टिक पाया, तुम्हारी क्या हस्ती है? अनेको उदाहरण देकर उन्होंने लेखक को चेताया। बड़े भाई ने  कक्षा की अलजबरा, जामेट्री और इतिहास पर अपनी टिप्पणी की और बताया की यह सब विषय बड़े कठिन हैं। निबंध लेखन को उन्होंने समय की बर्बादी बताया और कहा की परीक्षा में उत्तीर्ण करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। स्कूल का समय निकट था नही तो लेखक को और बहुत कुछ सुनना पड़ता। उस दिन लेखक को भोजन निःस्वाद सा लगा। इतना सुनने के बाद भी लेखक की अरुचि पढाई में बनी रही और खेल-कूद में वो शामिल होते रहे।

(3)
फिर सालाना परीक्षा में बड़े भाई फेल हो गए और लेखक पास। बड़े भाई ने अत्याधिक परिश्रम किया था और लेखक ने ज्यादा नहीं। लेखक को अपने बड़े भाई पर दया आ रही थी। जब नतीजा सुनाया गया तो वह रो पड़े  और उनके साथ लेखक भी रोने लगे। पास होने की ख़ुशी आधी हो गयी। अब उनके बीच केवल एक दर्जे का अंतर रह गया। लेखक को लगा यह उनके उपदेशों का ही असर है की वे दनादन पास हो जाते हैं। अब भाई साहब नरम पड़ गए। अब उन्होंने लेखक को डाँटना बंद कर दिया। अब लेखक में मन में यह धारणा बन गयी की वह पढ़े या ना पढ़े वे पास हो जायेंगे।
एक दिन संध्या कर समय लेखक होस्टल से दूर कनकौआ लूटने के लिए दौड़े जा रहे थे तभी उनकी मुठभेड़ बड़े भाई से हो गयी। वे लेखक का हाथ पकड़ लिया और गुस्सा होकर बोले कि तुम आठवीं कक्षा में भी आकर ये काम कर रहे हो। एक ज़माने में आठवीं पास कर नायाब तहसीलदार हो जाते थे, कई लीडर और समाचारपत्रों संपादक भी आठवीं पास हैं परन्तु तुम इसे महत्व नही देते हो। उन्होंने लेखक को तजुरबे का महत्व स्पष्ट करते हुए कहा कि भले ही तुम मेरे से कक्षा में कितने भी आगे निकल जाओ फिर भी मेरा तजुरबा तुमसे ज्यादा रहेगा और तुम्हें समझाने का अधिकार भी। उन्होंने लेखक को अम्माँ दादा का उदाहरण देते हुए कहा की भले ही हम बहुत पढ़-लिख जाएँ परन्तु उनके तजुरबे की बराबरी नही कर सकते। वे बिमारी से लेकर घर के काम-काज तक में हमारे से ज्यादा अनुभव रखते हैं। इन बातों को सुनकर लेखक उनके आगे नत-मस्तक हो गए और उन्हें अपनी लघुता का अनुभव हुआ। इतने में ही एक कनकौआ उनलोगों के ऊपर से गुजरा। चूँकि बड़े भाई लम्बे थे इसलिए उन्होंने पतंग की डोर पकड़ ली और होस्टल की तरफ दौड़ कर भागे। लेखक उनके पीछे-पीछे भागे जा रहे थे।

लेखक परिचय

प्रेमचंद

इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही गाँव में हुआ। इनका मूल नाम धनपत राय था परन्तु इन्होनें उर्दू में नबाव राय और हिंदी में प्रेमचंद नाम से काम किया। निजी व्यवहार और पत्राचार ये धनपत राय से ही करते थे। आजीविका के लिए स्कूल मास्टरी, इंस्पेक्टरी, मैनेजरी करने के अलावा इन्होनें 'हंस' 'माधुरी' जैसी प्रमुख पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। ये अपने जीवन काल में ही कथा सम्राट और उपन्यास सम्राट कहे जाने लगे थे।

प्रमुख कार्य

उपन्यास - गोदान, गबन, प्रेमाश्रम, सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, रंगभूमि, कायाकल्प, प्रतिज्ञा, और मंगलसूत्र(अपूर्ण)।

कठिन शब्दों के अर्थ

• तालीम - शिक्षा
• पुख्ता - मजबूत
• तम्बीह - डाँट-डपट
• सामंजस्य - तालमेल
• मसलन - उदाहरणतः
• इबारत - लेख
• चेष्टा - कोशिश
• जमात - कक्षा
• हर्फ़ - अक्षर
• मिहनत (मेहनत) - परिश्रम
• लताड़ - डाँट-डपट
• सूक्ति-बाण - तीखी बातें
• स्कीम - योजना
• अमल करना - पालन करना
• अवहेलना - तिरस्कार
• नसीहत - सलाह
• फजीहत - अपमान
• इम्तिहान - परीक्षा
• लज्जास्पद - शर्मनाक
• शरीक - शामिल
• आतंक - भय
• अव्वल - प्रथम
• आधिपत्य - प्रभुत्व
• स्वाधीन - स्वतंत्र
• महीप - राजा
• मुमतहीन - परीक्षक
• प्रयोजन - उद्देश्य
• खुराफात - व्यर्थ की बातें
• हिमाकत - बेवकूफी
• किफ़ायत - बचत
• टास्क - कार्य
• जलील - अपमानित
• प्राणांतक - प्राण का अंत करने वाला
• कांतिहीन - चेहरे पे चमक ना होना
• सहिष्णुता - सहनशीलता
• कनकौआ - पतंग
• अदब - इज्जत
• जहीन - प्रतिभावान
• तजुरबा - अनुभव
• बदहवास - बेहाल
• मुहताज (मोहताज) -दूसरे पर आश्रित

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Tuesday, 11 August 2015

आत्मत्राण - पठन सामग्री और व्याख्या NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और व्याख्या - आत्मत्राण स्पर्श भाग - 2

व्याख्या

विपदाओं से मुझे बचाओ ,यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
दुःख ताप से व्यथित चित को न दो सांत्वना नहीं सहीं
पर इतना होवे (करुणामय)
दुःख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले,
तो अपना बल पौरुष न हिले,
हानि उठानी पड़े जगत में लाभ वंचना रही
तो भी मन में न मानूँ क्षय।।

इन पंक्तियों में कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से कह रहे हैं कि दुखों से मुझे दूर रखें ऐसी आपसे में प्रार्थना नही कर रहा हूँ बल्कि मैं चाहता हूँ आप मुझे उन दुखों को झेलने की शक्ति दें। उन कष्ट के समय में मैं भयभीत ना हूँ। वे दुःख के समय में ईश्वर से सांत्वना बल्कि उन दुखों पर विजय पाने की आत्मविश्वास और हौंसला चाहते हैं। कोई कहीं कष्ट में सहायता करने वाला भी नही मिले फिर भी उनका पुरुषार्थ ना डगमगाए। अगर मुझे इस संसार में हानि भी उठानी पड़े, कोई लाभ प्राप्त ना हो या धोखा ही खाना पड़े तब भी मेरा मन दुखी ना हो। कभी भी मेरे मन की शक्ति का नाश ना हो।

मेरा त्राण करो अनुहदन तुम यह मेरी प्रार्थना नही
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नही सही।
केवल इतना रखना अनुनय -
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छीन-छीन में।
दुख रात्रि मे करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऎसा हो करुणामय ,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।

कवि कहते हैं कि हे भगवन्! मेरी यह प्रार्थना नहीं है आप प्रतिदिन मुझे भय से छुटकारा दिलाएँ। आप मुझे केवल रोग रहित यानी स्वस्थ रखें ताकि मैं अपने बल और शक्ति के सहारे इस संसार रूपी भवसागर को पार कर सकूँ। मैं यह नहीं चाहता की आप मेरे कष्टों का भार कम करें और ढाँढस बँधायें। आप मुझे निर्भयता सिखायें ताकि मैं सभी मुसीबतों से डटकर सामना कर सकूँ। सुख के दिनों में भी मैं आपको एक क्षण के लिए भी आपको ना भूलूँ। दुःखों से भरी रात में जब सारा संसार मुझे धोखा दे यानी मदद ना करें फिर भी फिर भी मेरे मन में आपके प्रति संदेह ना हो ऐसी शक्ति मुझमें भरें।

कवि परिचय

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

इनका जन्म 6 मई 1861 को धनि परिवार में हुआ है तथा शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। ये नोबेल पुरस्कार करने वाले प्रथम भारतीय हैं। छोटी उम्र में ही स्वाध्याय से अनेक विषयों का ज्ञान इन्होने अर्जित किया। बैरिरस्ट्री पढ़ने के लिए विदेश भेजे गए लेकिन बिना परीक्षा दिए ही लौट आये। इनकी रचनाओं में लोक-संस्कृति का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित होता है। प्रकृति से इनका गहरा लगाव था।

प्रमुख कार्य

काव्य -  गीतांजलि
कृतियाँ - नैवेद्य, पूरबी, बलाका, क्षणिका, चित्र और साध्यसंगीत, काबुलीवाला और सैकड़ों अन्य कहानियाँ।
उपन्यास - गोरा, घरे बाइरे, रवींद्र के निबंध।

कठिन शब्दों के अर्थ

• विपदा - कष्ट
• करुणामय - दूसरों पर दया करने वाला
• दुःख-ताप - कष्ट की पीड़ा
• व्यथित - दुखी
• चित्त - हृदय
• सांत्वना - तसल्ली
• पौरुष - पराक्रम
• त्राण - भय से छुटकारा
• अनुदिन - प्रतिदिन
• तरने - पार लगने
• अनामय - स्वस्थ
• अनुनय - प्रार्थना
• वहन - भार उठाना
• नत शिर - सिर झुकाकर
• छीन-छीन - क्षण-क्षण
• दुःख-रात्रि - कष्ट से भरी हुई रात
• वंचना - धोखा
• निखिल - सम्पूर्ण
• महि - धरती
• संशय - शक

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Sunday, 9 August 2015

कर चले हम फ़िदा - पठन सामग्री और व्याख्या NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और व्याख्या - कर चले हम फ़िदा स्पर्श भाग - 2

व्याख्या

कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते क़दम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

प्रस्तुत गीत कैफ़ी आजमी द्वारा भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म 'हकीकत' से लिया गया है। इस गीत में कवि ने खुद को भारत माता के सैनिक के रूप में अंकित किया है। कवि कहते हैं कि युद्धभूमि में सैनिक शहीद होते हुए अपने दूसरे साथियों से कहते हैं कि हमने अपने जान और तन को देश सेवा में समर्पित कर दिया, हम जा रहे हैं, अब देश की रक्षा करने का भार तुम्हारे हाथों में है। हमारी साँस थम रही थीं, ठंड से नसें जम रही थीं, हम मृत्यु की गोद में जा रहे थे फिर भी हमने पीछे हटकर उन्हें आगे बढ़ने का मौका नही दिया। हमारे कटे सिरों यानी शहीद हुए जवानों का हमें ग़म नहीं है, हमारे लिये ये प्रसन्नता की बात है की हमने अपने जीते जी हिमालय का सिर झुकने नहीं दिया यानी दुश्मनों को देश में प्रवेश नही करने दिया। मरते दम तक हमारे अंदर बलिदान और संघर्ष का जोश बना रहा। हम बलिदानी देकर जाकर रहे हैं, अब देश की रक्षा करने का भार तुम्हारे हाथों में है।

ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने के रुत रोज़ आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वह जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुलहन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

कवि एक सैनिक के रूप में कहते हैं कि व्यक्ति को जिन्दा रहने के लिए बहुत समय मिलते हैं परन्तु देश के लिए जान देने के मौके कभी-कभी ही मिलते हैं। जो जवानी खून में सराबोर नही होती वही प्यार और सौंदर्य को बदनाम करती है। सैनिक अपने साथियों की सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि आज धरती दुल्हन बनी हुई है यानी हमारी आन, बान और शान का प्रतीक है, इसलिए इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हमारे जाने के बाद इसकी रक्षा की जिमेवारी अब आपके हाथों में है।

राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फतह का जश्न इस जश्न‍ के बाद है
ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले
बांध लो अपने सर से कफ़न साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

शहीद होते हुए सैनिक कहते हैं कि बलिदानों का जो सिलसिला चल पड़ा है वो कभी रुक ना पाये यानी अपने देश की दुश्मनों से रक्षा के लिए सैनिक हमेशा आगे बढ़ते रहे। इन कुर्बानियों के बाद ही हमें जश्न मनाने के अवसर मिलेंगे। आज हम मृत्यु को प्राप्त होने वाले हैं इसलिए हमें अपने सिर पर कफ़न बाँध लेना चाहिए यानी मृत्यु का चिंता ना करते हुए शत्रु से लोहा लेने के लिए तैयार रहना चाहिए। अब हमारे जाने के बाद देश की रक्षा की जिमेवारी तुम्हारी है।

खींच दो अपने खूँ से ज़मी पर लकीर
इस तरफ आने पाए न रावण कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

सैनिक अपनी बलिदानी से पहले अपने साथियों से कहता है कि आओ हम अपने खून से धरती पर लकीर खीच दें जिसके पार जाने की कोई भी रावण रूपी शत्रु हिम्मत ना कर पाए। भारत माता को सीता समान बताते हुए कहता है अगर कोई भी हाथ भारत माता की आँचल छूने का दुस्साहस करे उसे तोड़ दो। भारत माता के सम्मान को किसी भी तरह ठेस ना पहुँचे। जिस तरह राम और लक्ष्मण ने सीता की रक्षा के लिए पापी रावण का नाश किया उसी तरह तुम भी शत्रु को पराजित कर भारत माता को सुरक्षित करो। अब ये वतन की जिमेवारी तुम्हारे हाथों में है।

कवि परिचय

कैफ़ी आज़मी

अतहर हुसैन रिज़वी का जन्म 19 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ जिले में मजमां गाँव में हुआ। ये आगे चलकर कैफ़ी आज़मी के रूप में मशहूर हुए। कैफ़ी आज़मी की गणना प्रगतिशील उर्दू कवियों की पहली पंक्ति में की जाती है। इनकी कविताओं में एक ओर सामाजिक और राजनितिक जागरूकता का समावेश है तो दूसरी ओर हृदय कोमलता भी है। इन्होने 10 मई 2002 को इस दुनिया को अलविदा कहा।

प्रमुख कार्य

कविता संग्रह - झंकार, आखिर-ए-शब, आवारा सज़दे, सरमाया
गीत संग्रह - मेरी आवाज़ सुनो
पुरस्कार - साहित्य अकादमी सहित अन्य पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• फ़िदा - न्योछावर
• हवाले - सौंपना
• जानो-तन - जान और शरीर
• वतन - देश
• नब्ज़ - नाड़ी
• रुत - मौसम
• हुस्न - सौंदर्य
• इश्क़ - प्यार
• रुस्वा - बदनाम
• खुँ - खून
• वीरान - सुनसान
• काफिले - यात्रियों का समूह
• फतह - जीत
• जश्न - ख़ुशी
• दामन - आँचल

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Thursday, 6 August 2015

तोप - पठन सामग्री और व्याख्या NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और व्याख्या - तोप स्पर्श भाग - 2

व्याख्या

कम्पनी बाग़ के मुहाने पर
धर रखी गई है यह 1857 की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल
विरासत में मिले
कम्पनी बाग की तरह
साल में चमकायी जाती है दो बार

प्रस्तुत कविता में कवि वीरेन डंगवाल ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध में अंग्रेज़ों द्वारा इस्तेमाल की हुई तोप का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि यह तोप आज कम्पनी बाग़ के प्रवेश द्वार रखी हुई है। जिस तरह कम्पनी बाग़ हमें अंग्रेज़ों द्वारा विरासत में मिली थी उसी तरह यह तोप भी हमें अंग्रेज़ो से ही प्राप्त हुआ जिसे आजकल बहुत देखभाल से रखा जाता है। कम्पनी बाग़ की तरह इसे भी साल में दो बार चमकाया जाता है।

सुबह-शाम कम्पनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी
उन्हें बताती है यह तोप
कि मैं बड़ी जबर
उड़ा दिये थे मैंने
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के छज्जे
अपने ज़माने में

सुबह-शाम को बहुत सारे यात्री कम्पनी बाग़ में घूमने आते हैं तब यह तोप अपने बारे में बताती है की मैं बड़ी ताकतवर थी। उस समय मैंने बहुत सारे वीरों के मारा था। बहुत अत्याचार किये थे।

अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो
तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप
कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं
ख़ासकर गौरैयें
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उनका मुँह बन्द !

परन्तु अब तोप की स्थिति बहुत बुरी है छोटे बच्चे इसपर बैठकर घुड़सवारी का खेल खेलते हैं। जब तोप बच्चों से मुक्त हो जाती है तब चिड़ियाँ इसपर बैठकर आपस में गप्प करती हैं। कभी-कभी चिड़ियाँ ख़ास तौर पर गौरेये तोप के भीतर घुस जाती हैं। इस दृश्य से कवि को ऐसा महसूस होता है मानो वह कह रही हों कोई कितना भी अत्याचारी और क्रूर हो उसका अंत एक न एक दिन जरूर होना है।

कवि परिचय

वीरेन डंगवाल

इनका जन्म 5 अगस्त 1947 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के कृतिनगर में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में हुई। इन्होने ऐसी बहुत सी चीज़ों और जीव-जंतुओं को अपनी कविता को आधार बनाया।

प्रमुख कार्य

कविता संग्रह - इसी दुनिया में और दुष्चक्र में स्रष्टा।
पुरस्कार - श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• मुहाने पर - प्रवेश द्वार पर
• सम्हाल - देखभाल
• विरासत - पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्ति
• सैलानी - यात्री
• जबर - शक्तिशाली
• सूरमाओं - वीरों
• फ़ारिग - मुक्त
• धज्जे - नष्ट-भ्रष्ट करना
• कंपनी बाग़ - गुलाम भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा जगह-जगह बनवाए गए बाग़-बगीचों में से कानपुर में बनवाया गया एक बाग़

NCERT Solutions of तोप

Tuesday, 4 August 2015

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल - पठन सामग्री और व्याख्या NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और व्याख्या - मधुर-मधुर मेरे दीपक जल स्पर्श भाग - 2

व्याख्या

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर!

कवियित्री महादेवी वर्मा को अपने ईश्वर पर अपार विश्वास और श्रद्धा है। इसी विश्वास के सहारे वह अपने प्रियतम के भक्ति में लीन हो जाना चाहती हैं। वह अपने हृदय में स्थित आस्था रूपी दीपक को सम्बोधित करते हुए कहती हैं कि तुम लगातार हर पल, हर दिन युग-युगांतर तक जलते रहो ताकि मेरे परमात्मा रूपी प्रियतम का पथ सदा प्रकाशित रहे यानी ईश्वर के प्रति उनका विश्वास कभी ना टूटे।

सौरभ फैला विपुल धूप बन
मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन!
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल-गल
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!

कवियित्री अपने तन को कहती हैं कि जिस प्रकार धूप या अगरबत्ती खुद जलकर सारे संसार को सुंगंधित करते हैं उसी तरह तुम अपने अच्छे कर्मों इस जग को सुगंधित करो। जिस तरह मोम जलकर सारे वातावरण को प्रकाशित करता है उसी तरह वह शरीर रूपी मोम को जलकर अपने अहंकार को नष्ट करने, पिघलने का अनुरोध करती हैं। शरीर रूपी मोम के जलने और अहंकार के पिघलने से असीमित समुद्र की भांति ऐसा प्रकाश आलोकित हो जो चारों ओर फ़ैल जाए चाहे इसके लिए शरीर रूपी मोम का हर कण गल जाए। वह अपने आस्था रूपी दीपक को प्रसन्नतापूर्वक जलते रहने को कहती हैं।

सारे शीतल कोमल नूतन
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण;
विश्व-शलभ सिर धुन कहता 'मैं
हाय, न जल पाया तुझमें मिल!
सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!

कवियित्री कहती हैं आज सारे संसार में परमात्मा के प्रति आस्था का अभाव है इसलिए सारे नए कोमल प्राणी यानी मन प्रभु भक्ति से विरक्त है वे आस्था की ज्योति को संसार में ढूंढ रहे हैं  पर उन्हें कहीं कुछ प्राप्त नही हो रहा है। इसलिए वह अपने आस्था रूपी दीपक से कह रही हैं कि तुम्हें आस्था के प्रति विश्वास की ज्योत देनी होगी ताकि उनके दीप प्रज्वल्लित हो जाएँ। संसार रूपी पतंगा पश्चाताप कर रहा है और अपने दुर्भाग्य पर रो रहा है कि प्रभु भक्ति की ज्योत में मैं अपने अहंकार को क्यों नही नष्ट कर पाया। यदि मैं ऐसा कर पाता तो शायद अब तक परमात्मा से मिलन हो जाता। अतः पतंगे को मुक्ति देने के लिए वह आस्था रूपी दीपक को काँप-काँपकर जलने को कहती हैं।

जलते नभ में देख असंख्यक
स्नेह-हीन नित कितने दीपक
जलमय सागर का उर जलता;
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!

कवियित्री को आकाश में अनगनित तारे दिख रहे हैं परन्तु वे सभी स्नेहरहित लग रहे हैं। इन सबके हृदय में ईश्वर की भक्ति और आस्था रूपी तेल नही है इसलिए ये भक्ति रूपी रोशनी नही दे पा रहे हैं। जिस प्रकार सागर का अपार जल जब गर्म होता है तब भाप बनकर आकाश में बिजली से घिरा हुआ बादल में परिवर्तित हो जाता है। ठीक उसी भांति इस संसार में भी चारों ओर लोग ईर्ष्या-द्वेष से जलते रहते हैं। जिन लोगों में आस्था रूपी दीपक होता है वे उन बादलों की भांति शांत होकर ठंडा जल बरसाते हैं मगर ईर्ष्या-द्वेष वाले लोग क्षण भर में बिजली की तरह नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कवियित्री दीपक को हँस-हँसकर लगातार जलने को कह रही हैं ताकि प्रभु का पथ आलोकित रहे और लोग उसपर चलें।

कवि-परिचय

महादेवी वर्मा

इनका जन्म 1907 को होली के दिन उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ तथा प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई।विवाह के कुछ अंतराल के बाद पढ़ाई फिर शुरू की। ये मिडिल में पूरे प्रांत में प्रथम आईं और छात्रवृत्ति भी पाईं। यह सिलसिला कई सालों तक चला। बाद में इन्होने बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहा परन्तु गांधीजी के आह्वान पर सामाजिक कार्यों में जुट गयीं। उच्च शिक्षा के लिए विदेश ना जाकर नारी शिक्षा प्रसार में जुट गयीं। इन्होनें छायावाद के अन्य चार रचनाकारों में औरों से भिन्न अपना एक  विशिष्ट स्थान बनाया। 11 सितम्बर 1987 को इनका देहावसान हो गया।

प्रमुख कार्य

काव्य कृतियाँ - बारहमासा, नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, प्रथम आयाम, अग्नि रेखा, यामा।
गद्य रचनाएं - अतीत के चलचित्र, श्रृंखला की कड़ियाँ, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मेरा परिवार और चिंतन के क्षण।
पुरस्कार - पद्मभूषण, ज्ञानपीठ सहित अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• प्रियतम - सबसे अधिक प्रिय, परमात्मा
• आलोकित - प्रकाशित
• सौरभ - सुगंध
• विपुल - विशाल
• मृदुल - कोमल
• सिंधु - सागर
• अपरिमित - असीमित
• पुलक - रोमांच
• नूतन - नए
• ज्वाला-कण - आग के कण
• शलभ - पतंगा
• सिहर - कांपना
• असंख्यक - अनेक
• स्नेहहीन - प्रेम रहित
• नित - नित्य
• उर - हृदय
• विद्युत - बिजली

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Sunday, 2 August 2015

पर्वत प्रदेश में पावस - पठन सामग्री और व्याख्या NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और व्याख्या - पर्वत प्रदेश में पावस स्पर्श भाग - 2

व्याख्या

पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।

इस कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने पर्वतीय इलाके में वर्षा ऋतु का सजीव चित्रण किया है। पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु होने से वहाँ प्रकृति में पल-पल बदलाव हो रहे हैं। कभी बादल छा जाने से मूसलधार बारिश हो रही थी तो कभी धूप निकल जाती है।

मेखलाकर पर्वत अपार
अपने सहस्‍त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
         -जिसके चरणों में पला ताल
          दर्पण सा फैला है विशाल!

पर्वतों की श्रृंखला मंडप का आकार लिए अपने पुष्प रूपी नेत्रों को फाड़े अपने नीचे देख रहा है। कवि को ऐसा लग रहा है मानो तालाब पर्वत के चरणों में पला हुआ है जो की दर्पण जैसा विशाल दिख रहा है। पर्वतों में उगे हुए फूल कवि को पर्वत के नेत्र जैसे लग रहे हैं जिनसे पर्वत दर्पण समान तालाब में अपनी विशालता और सौंदर्य का अवलोकन कर रहा है।

गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्‍तेजित कर
मोती की लडि़यों सी सुन्‍दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!

गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्‍चाकांक्षायों से तरूवर
है झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।

झरने पर्वत के गौरव का गुणगान करते हुए झर-झर बह रहे हैं। इन झरनों की करतल ध्वनि कवि के नस-नस में उत्साह का संचार करती है। पर्वतों पर बहने वाले झाग भरे झरने कवि को मोती की लड़ियों के समान लग रहे हैं जिससे पर्वत की सुंदरता में और निखार आ रहा है।
पर्वत के खड़े अनेक वृक्ष कवि को ऐसे लग रहे हैं मानो वे पर्वत के हृदय से उठकर उँची आकांक्षायें लिए अपलक और स्थिर होकर शांत आकाश को देख रहे हैं तथा थोड़े चिंतित मालुम हो रहे हैं।

उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!

धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

पल-पल बदलते इस मौसम में अचानक बादलों के आकाश में छाने से कवि को लगता है की पर्वत जैसे गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है मानो आकाश धरती पर टूटकर आ गिरा हो। केवल झरनों का शोर ही सुनाई दे रहा है।
तेज बारिश के कारण धुंध सा उठता दिखाई दे रहा है जिससे ऐसा लग रहा है मानो तालाब में आग लगी हो। मौसम के ऐसे रौद्र रूप को देखकर शाल के वृक्ष डरकर धरती में धँस गए हैं ऐसे प्रतीत होते हैं। इंद्र भी अपने बादलरूपी विमान में सवार होकर इधर-उधर अपना खेल दिखाते घूम रहे हैं।

कवि परिचय

सुमित्रानंदन पंत

इनका जन्म सन 20 मई 1900 को उत्तराखंड के कौसानी-अल्मोड़ा में हुआ था। इन्होनें बचपन से ही कविता लिखना आरम्भ कर दिया था। सात साल की उम्र में इन्हें स्कूल में काव्य-पाठ के लिए पुरस्कृत किया गया। 1915 में स्थायी रूप से साहित्य सृजन किया और छायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप में जाने गए। इनकी प्रारम्भिक कविताओं में प्रकृति प्रेम और रहस्यवाद झलकता है। इसके बाद वे मार्क्स और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए।

प्रमुख कार्य

कविता संग्रह - कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा
कृतियाँ - वीणा, पल्लव, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण और लोकायतन।
पुरस्कार - पद्मभूषण, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• पावस ऋतू - वर्षा ऋतू
• वेश - रूप
• मेघलाकार - करघनी के आकार की पहाड़ की ढाल
• अपार - जिसकी कोई सीमा ना हो
• सहस्त्र - हजारों
• दृग-सुमन - फूल रूपी आँखें
• अवलोक - देख रहा
• महाकार - विशाल आकार
• ताल - तालाब
• दर्पण - शीशा
• गिरि - पर्वत
• मद - मस्ती
• उत्तेजित करना - भड़काना
• निर्झर - झरना
• उर - हृदय
• उच्‍चाकांक्षायों - उँची आकांक्षा
• तरुवर - वृक्ष
• नीरव - शांत
• अनिमेष - अपलक
• अटल - स्थिर
• भूधर - पर्वत
• वारिद - बादल
• रव-शेष - केवल शोर बाकी रह जाना
• सभय - डरकर
• जलद - बादल रूपी वाहन
• विचर-विचर - घूम-घूम कर
• इंद्रजाल - इन्द्रधनुष

Monday, 20 July 2015

मनुष्यता- पठन सामग्री और व्याख्या NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और व्याख्या - दोहे स्पर्श भाग - 2

व्याख्या

प्रस्तुत पाठ में कवि मैथलीशरण गुप्त ने सही अर्थों में मनुष्य किसे कहते हैं उसे बताया है। कविता परोपकार की भावना का बखान करती है तथा मनुष्य को भलाई और भाईचारे के पथ पर चलने का सलाह देती है।

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।
हुई न यों सु-मृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु-प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि कहते हैं मनुष्य को ज्ञान होना चाहिए की वह मरणशील है इसलिए उसे मृत्यु से डरना नहीं चाहिए परन्तु उसे ऐसी सुमृत्यु को प्राप्त होना चाहिए जिससे सभी लोग मृत्यु के बाद भी याद करें। कवि के अनुसार ऐसे व्यक्ति का जीना या मरना व्यर्थ है जो खुद के लिए जीता हो। ऐसे व्यक्ति पशु के समान है असल मनुष्य वह है जो दूसरों की भलाई करे, उनके लिए जिए। ऐसे व्यक्ति को लोग मृत्यु के बाद भी याद रखते हैं।

उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती,
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।
अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि के अनुसार उदार व्यक्तियों की उदारशीलता को पुस्तकों, इतिहासों में स्थान देकर उनका बखान किया जाता है, उनका समस्त लोग आभार मानते हैं तथा पूजते हैं। जो व्यक्ति विश्व में एकता और अखंडता को फैलता है उसकी कीर्ति का सारे संसार में गुणगान होता है। असल मनुष्य वह है जो दूसरों के लिए जिए मरे।

क्षुदार्त रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर-चर्म भी दिया।
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

इन पंक्तियों में कवि ने पौरणिक कथाओं का उदारहण दिया है। भूख से व्याकुल रंतिदेव ने माँगने पर अपना भोजन का थाल भी दे दिया तथा देवताओं को बचाने के लिए दधीचि ने अपनी हड्डियों को व्रज बनाने के लिए दिया। राजा उशीनर ने कबूतर की जान बचाने के लिए अपने शरीर का मांस बहेलिए को दे दिया और वीर कर्ण ने अपना शारीरिक रक्षा कवच दान कर दिया। नश्वर शरीर के लिए मनुष्य को भयभीत नही होना चाहिए।

सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है वही,
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे?
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे,
वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि ने सहानुभूति, उपकार और करुणा की भावना को सबसे बड़ी पूंजी बताया है और कहा है की इससे ईश्वर भी वश में हो जाते हैं। बुद्ध ने करुणावश पुरानी परम्पराओं को तोड़ा जो कि दुनिया की भलाई के लिए था इसलिए लोग आज भी उन्हें पूजते हैं। उदार व्यक्ति वह है जो दूसरों की भलाई करे।

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में
सन्त जन आपको करो न गर्व चित्त में
अन्त को हैं यहाँ त्रिलोकनाथ साथ में
दयालु दीन बन्धु के बडे विशाल हाथ हैं
अतीव भाग्यहीन हैं अंधेर भाव जो भरे
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि कहते हैं की अगर किसी मनुष्य के पास यश, धन-दौलत है तो उसे इस बात के गर्व में अँधा होकर दूसरों की उपेक्षा नही करनी नहीं चाहिए क्योंकि इस संसार में कोई अनाथ नहीं है। ईश्वर का हाथ सभी के सर पर है। प्रभु के रहते भी जो व्याकुल है वह बड़ा भाग्यहीन है।

अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े¸
समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े–बड़े।
परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी¸
अभी अमत्र्य–अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि के अनुसार अनंत आकाश में असंख्य देवता मौजूद हैं जो अपने हाथ बढ़ाकर परोपकारी और दयालु मनुष्यों के स्वागत के लिए खड़े हैं। इसलिए हमें परस्पर सहयोग बनाकर उन ऊचाइयों को प्राप्त करना चाहिए जहाँ देवता स्वयं हमें अपने गोद में बिठायें। इस मरणशील संसार में हमें एक-दूसरे के कल्याण के कामों को करते रहें और स्वयं का उद्धार करें।

'मनुष्य मात्र बन्धु है' यही बड़ा विवेक है¸
पुराणपुरूष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है¸
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
अनर्थ है कि बंधु हो न बंधु की व्यथा हरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई-बंधू है यह बहुत बड़ी समझ है सबके पिता ईश्वर हैं। भले ही मनुष्य के कर्म अनेक हैं परन्तु उनकी आत्मा में एकता है। कवि कहते हैं कि अगर भाई ही भाई की मदद नही करेगा तो उसका जीवन व्यर्थ है यानी हर मनुष्य को दूसरे की मदद को तत्पर रहना चाहिए।

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए¸
विपत्ति विप्र जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेल मेल हाँ¸ बढ़े न भिन्नता कभी¸
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

अंतिम पंक्तियों में कवि मनुष्य को कहता है कि अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हंसते खेलते चलो और रास्ते पर जो बाधा पड़े उन्हें हटाते हुए आगे बढ़ो। परन्तु इसमें मनुष्य को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका आपसी सामंजस्य न घटे और भेदभाव न बढ़े। जब हम एक दूसरे के दुखों को दूर करते हुए आगे बढ़ेंगे तभी हमारी समर्थता सिद्ध होगी और समस्त समाज की भी उन्नति होगी।

कवि परिचय

मैथिलीशरण गुप्त

इनका जन्म 1886 में झाँसी के करीब चिरगाँव में हुआ था। अपने जीवन काल में ही ये राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए। इनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। संस्कृत, बांग्ला, मराठी और अंग्रेजी पर इनका सामान अधिकार था। ये रामभक्त कवि हैं। इन्होने भारतीय जीवन को समग्रता और प्रस्तुत करने का प्रयास किया।

प्रमुख कार्य

कृतियाँ - साकेत, यशोधरा जयद्रथ वध।

कठिन शब्दों के अर्थ

• मृत्य - मरणशील
• वृथा - व्यर्थ
• पशु–प्रवृत्ति - पशु जैसा स्वभाव
• उदार - दानशील
• कृतार्थ - आभारी
• कीर्ति - यश
• क्षुधार्थ - भूख से व्याकुल
• रंतिदेव -एक परम दानी राजा
• करस्थ - हाथ में पकड़ा हुआ
• दधीची - एक प्रसिद्ध ऋषि जिनकी हड्डियों से इंद्र का व्रज बना था
• परार्थ - जो दूसरे के लिए हो
• अस्थिजाल - हड्डियों का समूह
• उशीनर - गंधार देश का राजा
• क्षितीश - राजा
• स्वमांस - शरीर का मांस
• कर्ण - दान देने के लिए प्रसिद्ध कुंती पुत्र
• अनित्य - नश्वर 
• अनादि - जिसका आरम्भ ना हो
• सहानुभूति - हमदर्दी
• महाविभूति - बड़ी भारी पूँजी
• वशीकृता - वश में की हुई
• विरूद्धवाद बुद्ध का दया–प्रवाह में बहा - बुद्ध ने करुणावश उस समय की पारम्परिक मान्यताओं का विरोध किया था।
• विनीत - विनय से युक्त
• मदांध - जो गर्व से अँधा हो।
• वित्त - धन-संपत्ति
• अतीव - बहुत ज्यादा
• अनंत - जिसका कोई अंत ना हो
• परस्परावलम्ब - एक-दूसरे का सहारा
• अमृत्य–अंक - देवता की गोद
• अपंक - कलंक रहित
• स्वयंभू - स्वंय से उत्पन्न होने वाला
• अंतरैक्य - आत्मा की एकता
• प्रमाणभूत - साक्षी
• अभीष्ट - इक्षित
• अतर्क - तर्क से परे
• सतर्क पंथ - सावधानी यात्रा

Friday, 10 July 2015

दोहे - पठन सामग्री और भावार्थ NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और भावार्थ - दोहे स्पर्श भाग - 2

भावार्थ

सोहत ओढैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं पीले वस्त्र पहने श्रीकृष्ण ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो नीलमणि पर्वत पर प्रातःकालीन सूर्य की किरण पड़ रही हो।

कहलाने एकत बसत अहि मयूर , मृग बाघ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ–दाघ निदाघ।।

भावार्थ - ग्रीष्म ऋतू की भयानक ताप ने इस संसार को जैसे तपोवन बना दिया है। इस भयंकर गर्मी से बचने के लिए एक-दूसरे के शत्रु साँप, मोर और सिंह साथ-साथ रहने लगे हैं। विपत्ति की इस घडी में सभी द्वेषों को भुलाकर जानवर भी तपस्वियों जैसा व्यवहार कर रहे हैं।

बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ।।

भावार्थ - गोपियों ने श्रीकृष्ण से बात करने की लालसा के कारण उनकी बाँसुरी छुपा दी हैं। वे भौंहों से मुरली ना चुराने का कसम खातीं हैं। वे कृष्ण को उनकी बाँसुरी देने से इनकार करती हैं।

कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत,खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने लोगों बीच में भी दो प्रेमी किस तरह अपने प्रेम को जताते हैं इसे दिखया है। भरे भवन में नायक अपनी नैनों से नायिका से मिलने को कहता है, जिसे नायिका मना कर देती है। उसके मना करने के इशारे पर नायक मोहित हो जाता है जिससे नायिका खीज जाती है। बाद में दोनों मिलते हैं और उनके चेहरे खिल जाते हैं तथा नायिका शरमा उठती है। ये सारी बातें वे दोनों भौंहों के इशारों और नैन द्वारा करते हैं।

बैठि रही अति सघन बन , पैठि सदन–तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने जेठ मास की दोपहरी का चित्रण किया है। इस समय धूप इतनी अधिक होती है कि आराम के लिए कहीं छाया भी नहीं मिलती। ऐसा लगता है मानो छाया भी छाँव को ढूँढने चली गई हो। गर्मी से बचकर विश्राम करने के लिए वह भी अपने घने भवन में चली गयी है।

कागद पर लिखत न बनत , कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी उस नायिका के मनोदशा को दिखा रहे हैं जिसका प्रियतम उससे दूर है। नायिका कहती है कि उसे कागज़ पे अपना सन्देश लिखा नहीं जा रहा है। किसी संदेशवाहक के द्वारा सन्देश नही भिजवा सकती क्योंकि उसे कहने में लज्जा आ रही है। इसलिए वह कहती है कि अब तुम्हीं अपने हृदय पर हाथ रख महसूस करो की मेरा हृदय में क्या है।

प्रगट भए द्विजराज – कुल सुबस बसे ब्रज आइ ।
मेरे हरौ कलेस सब , केसव केसवराइ।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी श्रीकृष्ण से कह रहे हैं कि आप चन्द्रवंश में पैदा हुए तथा अपनी इच्छा से ब्रज आये। आप मेरे पिता के समान हैं। आप मेरे सारे कष्टों को दूर करें।

जपमाला , छापैं , तिलक सरै न एकौ कामु।
मन–काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु ।।

भावार्थ - बिहारी कहते हैं कि हाथ में जपमाला थाम, तिलक लगा कर आडम्बर करने से कोई काम नही होता। मन काँच की तरह क्षणभंगुर होता है जो व्यर्थ में नाचता रहता है। इन सब दिखावा को छोड़ अगर भगवान की सच्चे मन से आराधना की जाए तभी काम बनता है।

कवि परिचय

बिहारी

इनका जन्म 1595 में ग्वालियर में हुआ था। सात-आठ वर्ष की उम्र में ही इनके पिता ओरछा चले गए जहाँ इन्होंने आचार्य केशवदास से काव्य शिक्षा पायी। यहीं बिहारी रहीम के संपर्क में आये। बिहारी ने अपने जीवन के कुछ वर्ष जयपुर में भी बिताये। ये रसिक जीव थे पर इनकी रसिकता नागरिक जीवन की रसिकता थी। इनका स्वभाव विनोदी और व्यंग्यप्रिय था। इनकी एक रचना 'सतसई' उपलब्ध है जिसमे करीब 700 दोहे संगृहीत हैं। 1663 में इनका देहावसान हुआ।

कठिन शब्दों के अर्थ

• सोहत - अच्छा लगना
• पीतु - पिला
• पटु - वस्त्र
• नीलमनि सैल - नीलमणि का पर्वत
• आतपु - धुप
• बसत - बसना
• अहि - साँप
• तपोबन - वह वन जहाँ तपस्वी रहते हैं
• दीरघ–दाघ - भयंकर गर्मी 
• निदाघ - ग्रीष्म ऋतू
• बतरस - बातचीत का आनंद
• मुरली - बाँसुरी
• लुकाइ - छुपाना
• सौंह - शपथ
• भौंहनु - भौंह से
• नटि - मना करना
• रीझत - मोहित होना
• खिझत - बनावटी गुस्सा दिखाना
• मिलत - मिलना
• खिलत - खिलना
• लजियात - लज्जा आना
• भौन - भवन
• सघन - घना
• पैठि - घुसना
• सदन–तन - भवन में
• कागद - कागज़
• सँदेसु - सन्देश
• हिय - हृदय
• द्विजराज - चन्द्रमा, ब्राह्मण
• सुबस - अपनी इच्छा से
• केसव - श्री कृष्ण
• केसवराइ - बिहारी कवि के पिता
• जपमाला - जपने की माला
• छापैं - छापा
• मन–काँचै - कच्चा मन
• साँचै - सच्ची भक्ति वाला

Saturday, 4 July 2015

पद - पठन सामग्री और भावार्थ NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और भावार्थ - पद स्पर्श भाग - 2

भावार्थ

हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि , धरयो आप सरीर।
बूढतो गजराज राख्यो , काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।

भावार्थ - इस पद में मीराबाई अपने प्रिय भगवान श्रीकृष्ण से विनती करते हुए कहतीं हैं कि हे प्रभु अब आप ही अपने भक्तों की पीड़ा हरें। जिस तरह आपने अपमानित द्रोपदी की लाज उसे चीर प्रदान करके बचाई थी जब दु:शासन ने उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया था। अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह रूप धारण किया था। आपने ही डुबते हुए हाथी की रक्षा की थी और उसे मगरमच्छ के मुँह से बचाया था। इस प्रकार आपने उस हाथी की पीड़ा दूर की थी। इन उदाहरणों को देकर दासी मीरा कहतीं हैं की हे गिरिधर लाल! आप मेरी पीडा भी दूर कर मुझे छुटकारा दीजिये।

स्याम म्हाने चाकर राखे जी,गिरिधरी लाल म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ , सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनू बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में भेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
उँचा उँचा महल बणाव , बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ , पहर कुसुम्बी साडी।
आधी रात प्रभु दरसण , दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवडो घणो अधीराँ॥

भावार्थ - इन पदों में मीरा भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहतीं हैं कि हे श्याम! आप मुझे अपनी दासी बना लीजिये। आपकी दासी बनकर में आपके लिए बाग–बगीचे लगाऊँगी , जिसमें आप विहार कर सकें। इसी बहाने मैं रोज आपके दर्शन कर सकूँगी। मैं वृंदावन के कुंजों और गलियों में कृष्ण की लीला के गान करुँगी। इससे उन्हें कृष्ण के नाम स्मरण का अवसर प्राप्त हो जाएगा तथा भावपूर्ण भक्ति की जागीर भी प्राप्त होगी। इस प्रकार दर्शन, स्मरण और भाव–भक्ति नामक तीनों बातें मेरे जीवन में रच–बस जाएँगी ।
अगली पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मेरे प्रभु कृष्ण के शीश पर मोरपंखों का बना हुआ मुकुट सुशोभित है। तन पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं। गले में वनफूलों की माला शोभायमान है। वे वृन्दावन में गायें चराते हैं और मनमोहक मुरली बजाते हैं। वृन्दावन में मेरे प्रभु का बहुत ऊँचे-ऊँचे महल हैं। वे उस महल के आँगन के बीच–बीच में सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनाना चाहती हैं। वे कुसुम्बी साड़ी पहनकर अपने साँवले प्रभु के दर्शन पाना चाहती हैं। मीरा भगवान कृष्ण से निवेदन करते हुए कहती हैं कि हे प्रभु! आप आधी रात के समय मुझे यमुना जी के किनारे अपने दर्शन देकर कृतार्थ करें। हे गिरिधर नागर! मेरा मन आप से मिलने के लिए बहुत व्याकुल है इसलिए दर्शन देने अवश्य आइएगा।

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Thursday, 2 July 2015

साखी - पठन सामग्री और भावार्थ NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और भावार्थ - साखी स्पर्श भाग - 2

भावार्थ

ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ।।

भावार्थ - कबीर कहते हैं की हमें ऐसी बातें करनी चाहिए जिसमें हमारा अहं ना झलकता हो। इससे हमारा मन शांत रहेगा तथा सुनने वाले को भी सुख और शान्ति प्राप्त होगी।

कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढै वन माँहि। 
ऐसैं घटि-घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि।।

भावार्थ - यहाँ कबीर ईश्वर की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहते हैं की कस्तूरी की हिरन की नाभि में होती है लेकिन इससे अनजान हिरन उसके सुगंध के कारण उसे पूरे जंगल में ढूंढ़ता फिरता है ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं परन्तु मनुष्य इसे वहाँ नही देख पाता। वह ईश्वर को मंदिर-मस्जिद और तीर्थ स्थानों में ढूंढ़ता रहता है।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।।

भावार्थ - यहाँ कबीर कह रहे हैं की जब तक मनुष्य के मन में अहंकार होता है तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नही होती। जब उसके अंदर का अंहकार मिट जाता है तब ईश्वर की प्राप्ति होती है। ठीक उसी प्रकार जैसे दीपक के जलने पर उसके प्रकाश से आँधियारा मिट जाता है। यहाँ अहं का प्रयोग अन्धकार के लिए तथा दीपक का प्रयोग ईश्वर के लिए किया गया है।

सुखिया सब संसार है, खायै अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।।

भावार्थ - कबीरदास के अनुसार ये सारी दुनिया सुखी है क्योंकि ये केवल खाने और सोने का काम करता है। इसे किसी भी प्रकार की चिंता है। उनके अनुसार सबसे दुखी व्यक्ति वो हैं जो प्रभु के वियोग में जागते रहते हैं। उन्हें कहीं भी चैन नही मिलता, वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में रहते हैं।

बिरह भुवंगम तन बसै, मन्त्र ना लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ।।

भावार्थ - जब किसी मनुष्य के शरीर के अंदर अपने प्रिय से बिछड़ने का साँप बसता है तो उसपर कोई मन्त्र या दवा का असर नही होता ठीक उसी प्रकार राम यानी ईश्वर के वियोग में मनुष्य भी जीवित नही रहता। अगर जीवित रह भी जाता है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है।

निंदक नेडा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणी बिना, निरमल करै सुभाइ।।

भावार्थ - संत कबीर कहते हैं की निंदा करने वाले व्यक्ति को सदा अपने पास रखना चाहिए, हो सके तो उसके लिए अपने पास रखने का प्रबंध करना चाहिए ताकि हमें उसके द्वारा अपनी त्रुटियों को सुन सकें और उसे दूर कर सकें। इससे हमारा स्वभाव साबुन और पानी की मदद के बिना निर्मल हो जाएगा।

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया ना कोइ।
ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई।।

भावार्थ - कबीर कहते हैं की इस संसार में मोटी-मोटी पुस्तकें पढ़-पढ़ कर कई मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी पंडित ना बन पाया। यदि किसी मनुष्य ने ईश्वर-भक्ति का एक अक्षर भी पढ़ लिया होता तो वह पंडित बन जाता यानी ईश्वर ही एकमात्र सत्य है, इसे जानेवाला ही ज्ञानी है।

हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराडा हाथि। 
अब घर जालौं तास का, जे चले हमारे साथि।।

भावार्थ - कबीर कहते हैं की उन्होंने अपने हाथों से अपना घर जला लिया है यानी उन्होंने मोह-माया रूपी घर को जलाकर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल है यानी ज्ञान है। अब वो उसका घर जालयेंगे जो उनके साथ जाना चाहता है यानी उसे भी मोह-माया के बंधन से आजाद होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।

कवि परिचय

कबीर

इनका जन्म 1398 में काशी में हुआ ऐसा माना जाता है। इनके गुरु रामानंद थे। ये क्रांतदर्शी के कवि थे जिनके कविता से गहरी सामाजिक चेतना प्रकट होती है। इन्होने 120 वर्ष की लम्बी उम्र पायी। इन्होने आने जीवन के कुछ अंतिम वर्ष मगहर में बिताये और वहीँ चिर्निद्रा में लीन हो गए।

कठिन शब्दों के अर्थ

• बाँणी - वाणी
• आपा - अहंकार
• सीतल - ठंडा
• कस्तूरी - एक सुगन्धित पदार्थ
• कुंडलि - नाभि
• माँहि - भीतर
• मैं - अंहकार
• हरि - भगवान
• मिटि - मिटना
• सुखिया - सुखी
• अरु - और
• बिरह - वियोग
• भुवंगम - साँप
• बौरा - पागल
• निंदक - बुराई करने वाला
• नेड़ा - निकट
• आँगणि - आँगन
• साबण - साबुन
• पाँणी - पानी
• निरमल - पवित्र
• सुभाइ - स्वभाव
• पोथी - ग्रन्थ
• मुवा - मर गया
• भया - हुआ
• अषिर - अक्षर
• पीव - प्रियतम या ईश्वर
• जाल्या - जलाया
• आपणाँ - अपना
• मुराडा - जलती हुई लकड़ी
• जालौं - जलाऊँ
• तास का - उसका

Wednesday, 1 July 2015

संस्कृति - पठन सामग्री और सार NCERT Class 10th Hindi

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - संस्कृति क्षितिज भाग - 2

सार

लेखक कहते हैं की सभ्यता और संस्कृति दो ऐसे शब्द हैं जिनका उपयोग अधिक होता है परन्तु समझ में कम आता है। इनके साथ विशेषण लगा देने से इन्हे समझना और भी कठिन हो जाता है। कभी-कभी दोनों को एक समझ लिया जाता है तो कभी अलग। आखिर ये दोनों एक हैं या अलग। लेखक समझाने का प्रयास करते हुए आग और सुई-धागे के आविष्कार उदाहरण देते हैं। वह उनके आविष्कर्ता की बात कहकर व्यक्ति विशेष की योग्यता, प्रवृत्ति और प्रेरणा को व्यक्ति विशेष की संस्कृति कहता है जिसके बल पर आविष्कार किया गया।

लेखक संस्कृति और सभ्यता में अंतर स्थापित करने के लिए आग और सुई-धागे के आविष्कार से जुड़ी प्रारंभिक प्रयत्नशीलता और बाद में हुई उन्नति के उदहारण देते हैं। वे कहते हैं लौहे के टुकड़े को घिसकर छेद बनाना और धागा पिरोकर दो अलग-अलग टुकड़ों को जोड़ने की सोच ही संस्कृति है। इन खोजों को आधार बनाकर आगे जो इन क्षेत्रों में विकास हुआ वह सभ्यता कहलाता है। अपनी बुद्धि के आधार पर नए निश्चित तथ्य को खोज आने वाली पीढ़ी को सौंपने वाला संस्कृत होता है जबकि उसी तथ्य को आधार बनाकर आगे बढ़ने वाला सभ्यता का विकास करने वाला होता है। भौतिक विज्ञान के सभी विद्यार्थी जानते हैं की न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया इसलिए वह संस्कृत कहलाया परन्तु वह और अनेक बातों को नही जान पाया। आज के विद्यार्थी उन बातों को भी जानते है लेकिन हम इन्हे अधिक सभ्य भले ही कहे परन्तु संस्कृत नही कह सकते।

लेखक के अनुसार भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे और आग के आविष्कार करते तथ्य संस्कृत संस्कृत होने या बनने के आधार नही बनते, बल्कि मनुष्य में सदा बसने वाली सहज चेतना भी इसकी उत्पत्ति या बनने का कारण बनती है। इस सहज चेतना का प्रेरक अंश हमें अपने मनीषियों से भी मिला है। मुँह के कौर को दूसरे के मुँह  में डाल देना और रोगी बच्चे को रात-रात भर गोदी में लेकर माता का बैठे रहना इसी इसी चेतना से प्रेरित होता है। ढाई हजार वर्ष पूर्व बुद्ध का मनुष्य को तृष्णा से मुक्ति के लिए उपायों को खोजने में गृह त्यागकर कठोर तपस्या करना, कार्ल मार्क्स का मजदूरों के सुखद जीवन के सपने पूरा करने के लिए दुखपूर्ण जीवन बिताना और लेनिन का मुश्किलों से मिले डबल रोटी के टुकड़ों को दूसरों को खिला देना इसी चेतना से संस्कृत बनने का उदाहरण हैं। लेखक कहते हैं की खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने के तरीके आवागमन के साधन से लेकर परस्पर मर-कटने के तरीके भी संस्कृति का ही परिणाम सभ्यताके उदाहरण हैं।

मानव हित में काम ना करने वाली संस्कृति का नाम असंस्कृति है। इसे संस्कृति नही कहा जा सकता। यह निश्चित ही असभ्यता को जन्म देती है। मानव हित में निरंतर परिवर्तनशीलता का ही नाम संस्कृति है।  यह बुद्धि और विवेक से बना एक ऐसा तथ्य है जिसकी कभी दल बाँधकर रक्षा करने की जरुरत नही पड़ती। इसका कल्याणकारी अंश अकल्याणकारी अंश की तुलना में सदा श्रेष्ठ और स्थायी है।

लेखक परिचय

भदंत आनंद कौसल्यायन

इनका जन्म सन 1905 में पंजाब के अम्बाला जिले के सोहाना गाँव में हुआ। इनके बचपन का नाम हरनाम दास था। इन्होने लाहौर के नेशनल कॉलिज से बी.ए. किया। ये बौद्ध भिक्षु थे और इन्होने देश-विदेश की काफी यात्राएँ की तथा बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। वे गांधीजी के साथ लम्बे अरसे तक वर्धा में रहे। सन 1988 में इनका निधन हो गया।

प्रमुख कार्य

पुस्तक - भिक्षु के पत्र, जो भूल ना सका, आह! ऐसी दरिद्रता, बहानेबाजी, यदि बाबा ना होते, रेल का टिकट, कहाँ क्या देखा।

कठिन शब्दों के अर्थ

• आध्यात्मिक - परमात्मा या आत्मा से सम्बन्ध रखने वाला
• साक्षात - आँखों के सामने
• अनायास - आसानी से
• तृष्णा - लोभ
• परिष्कृत - सजाया हुआ
• कदाचित - कभी
• निठल्ला - बेकार
• मिनिषियों - विद्वानों
• शीतोष्ण - ठंडा और गरम
• वशीभूत -  वश में होना
• अवश्यंभावी - अवश्य होने वाला
• पेट की ज्वाला - भूख
• स्थूल - मोटा
• तथ्य - सत्य
• पुरस्कर्ता - पुरस्कार देने वाला
• ज्ञानेप्सा - ज्ञान प्राप्त करने की लालसा
• सर्वस्व - स्वयं को सब कुछ
• गमना गमन - आना-जाना
• प्रज्ञा - बुद्धि
• दलबंदी - दल की बंदी
• अविभाज्य - जो बाँटा ना जा सके

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