Wednesday 27 January 2016

हिंदी 'ब' Previous Year Question Paper 2015 Topper Solutions| Class 10th

Solution of Previous Year Question Paper Class 10th Course 'B' Summative Assessment II 2015

इस उत्तर पत्र को देखने से पहले प्रश्न पत्र को यहाँ देखें। 

खंड - क

1. (क) लेखक के अनुसार मनुष्य जीवन की महानता अपना सर्वस्व न्योछावर करने में हैं। यह इसलिए क्योंकि अपने अहं को पूर्णतः त्याग देना अत्यधिक कष्टसाध्य है। यह मनुष्य तभी कर सकता है जब वह शुद्ध समर्पण के भाव से प्रेरित हो।

(ख) 'साहित्यानुरागी' वह होता है जो उच्च साहित्य का रसस्वादन करते समय पात्रों के मनोभावों को अपना बनाकर, उस पात्र में एकाकार होता है। इस प्रकार पात्रों में घुसकर तथा स्वयं के मनोभावों को त्याग कर वह साहित्य का आनंद प्राप्त करता है।

(ग) लेखक का मंतव्य है कि प्रभु भक्ति की पूँजी अलभ्य है। पर भक्त इस पूँजी को तब प्राप्त कर सकता है जब जब वह अपना सर्वस्व प्रभु को अर्पित कर दें और पूर्णतः प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को लय कर देता है।

(घ) भौतिक सुखों में लिप्त होने पर भी अपनी क्षुद्रता को समझना और अपने अस्तित्व के झूठे अहंकार को त्याग देना मनुष्य के व्यक्तित्व की चरम उपलब्धि है। यह उपलब्धि प्राप्त करना एक कठिन परीक्षा के समान है। इस कार्य को करना हँसी खेल नहीं है।

(ड़) कुछ और प्राप्त करने के लिए स्वयं को भूल जाना ही 'विचित्र विरोधाभास' है। यह मार्ग सरल अवश्य प्रतीत होता है परन्तु इसे अपनाने पर ज्ञान होता है कि यह अत्यंत कठिन मार्ग है।

(च) 'सर्वस्व समर्पण' अर्थात स्वयं को पूर्णतः परार्थ हेतु समर्पित कर देना। सर्वस्व समर्पण करने पर मनुष्य की नैतिक और चारित्रिक दृढ़ता, अपूर्व समृद्धि और परमानंद का सुख प्राप्त होता है। यही इसका लाभ है।

2. (क) हमें अपने पूर्वजों से जीवन जीने के लिए आवश्यल मूल्य सीखने चाहिए। एक सुखदायी जीवन जीने, सुमृत्यु प्राप्त करने आदि जैसी नीतियों को पूर्वजों से सीखना चाहिए।

(ख) 'विविध सुमनों की माला' द्वारा कवि अनेकता में एकता के भाव को उतपन्न करना चाहते हैं। वे कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार एक माला में नाना प्रकार के फूल हो सकते हैं उसी प्रकार समाज में भिन्न धर्म, जाति, संप्रदाय आदि के लोग एक होकर रह सकते हैं।

(ग) कविता में हंस का उदाहरण उसके चातुर्य के कारण किया गया है। कवि कहते हैं कि मनुष्य को नए-पुराने सभी प्रकार की रूढ़ियों को त्याग कर हंस की भाँति चतुर बनना चाहिए।

(घ) प्रस्तुत पंक्ति द्वारा कवि स्वदेश प्रेम की भावना उजागर करना चाहते हैं। वे कहते हैं की मनुष्य में अपने देश के प्रति हृदय से अनुराग और आसक्ति का होना अनिवार्य है। उसे देश के प्रति प्रेम होने का बाह्यडंबर नहीं करना चाहिए।

खंड - ख

3. दो या दो से अधिक वर्णों के सार्थक व् स्वतंत्र समूह को शब्द कहते हैं शब्दों पर व्याकरण के नियम लागू नहीं होते हैं।
शब्दों को जब वाक्य में प्रयोग किया जाता है, तब वे पद में बदल जाते हैं पदों पर व्याकरण के नियम लागू हो जाते हैं।

उदाहरण: 'फल' - यह शब्द है।
               'मैंने फल खाया।' यहाँ 'फल' शब्द न रहकर पद बन गया है।

4. (क) मिश्र वाक्य
(ख) वह लोकप्रिय था इसलिए उसका जोरदार स्वागत हुआ।
(ग) वे बाज़ार जाकर सब्ज़ी ले आए।

5. (क) हाथी-घोड़े: विग्रह - हाथी और घोड़े
                           भेद - द्वंद्व समास

पीतांबर: विग्रह - पीत (पीला) है जिसका अंबर
                     भेद - कर्मधारय समास

 (ख) घन के समान श्याम: समस्तपद - घनश्याम
                                        भेद - तत्पुरुष समास

देश का वासी: समस्तपद - देशवासी
                                        भेद - तत्पुरुष समास

6. (क) सोने का एक हार ले आओ।
(ख) कृपया आज का अवकाश दें।
(ग) मुझे हज़ार रुपए चाहिए।
(घ) क्या उसने देख लिया है?

7. काम तमाम कर देना - पांडवों ने कौरवों का काम तमाम कर दिया।
हक्का-बक्का रह जाना - विदेशी पर्यटक ताज महल की सुंदरता को देखकर हक्का-बक्का रह जाते हैं।

खंड - ग

8. (क) येल्दीरीन तथा भीड़ में उपस्थित जब सभी लोगों को ज्ञान हुआ कि कुत्ता जनरल साहब का था, तब येल्दीरीन कुत्ते का पक्ष लेने लगा। उसने कहा की ख्यूक्रन शरारती व्यक्ति था और ख्यूक्रिन ने जान-बूझकर कुत्ते की नाक में जलती सिगरेट घुसा दी होगी येल्दीरीन का मत था कि वह कुत्ता कभी किसी को हानि नहीं पहुँचा सकता है।

(ख) शेख अयाज़ के पिता कुएँ के पास से लौटे थे। भोजन करते समय जब उन्होंने अपनी बाजू पर एक च्योंटा देखा, तब वे तुरंत भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए। शेख की माँ के पूछने पर उनके (शेख अयाज़ के) पिता ने कहा कि वे बेघर हुए च्योंटे को उसके परिवार के पास छोड़ने जा रहे हैं। इस प्रकरण से हमें यह ज्ञात होता की शेख अयाज़ के पिता दयावान थे। उनमें प्राणीमात्र के प्रति सहानुभूति थी। वे सभी प्राणियों के दुख-दर्द समझने थे।

(ग) शुद्ध सोने पर शत-प्रतिशत सोना होता है तथा गिन्नी के सोने में ताँबा मिलाया जाता है। जीवन में गिन्नी के सोने का व्यावहारिक उपयोग अधिक होता है पर शुद्ध सोना ही मूलयवान है। अतः वे भिन्न हैं।

9. 'गिरगिट' ऐसा प्राणी होता है जो परिस्थिति के अनुकूल अपना रंग बदलता है। प्रस्तुत पाठ 'गिरगिट' द्वारा लेखक 'अंतोन चेखव जी' ने अपने मुख्य पात्र ओचुमेलॉव की चापलूसी व् रिश्वतखोरी के माध्यम से समाज में विद्यमान अनेक विसंगतियों को उजागर करने का प्रयास किया है। पेशे से इंस्पेक्टर होने के नाते यह ओचुमेलॉव का कर्तव्य था कि वह न्याय करे, पक्षपात नहीं। परंतु ख्यूक्रिन और कुत्ते के बीच हुए मसले में वह न्याय करना भूल गया तथा अपना स्वार्थ सिद्ध करने हेतु चापलूसी करने लगा। जैसे ही यह ज्ञान हुआ कि कुत्ता जनरल साहब का था और अंत में यह ज्ञान हुआ कि कुत्ता जनरल के भाई का था, वैसे ही ओचुमेलॉव तथा उसका साथी येल्दीरीन, जनरल साहब और उसके भाई की चापलूसी करने लगे। अपनी चाटुकारिता द्वारा वे लाभ प्राप्त करना चाहते थे। ख्यूक्रिन ने भी इस बात का जिक्र किया कि उसका एक भाई पुलिस में था। अतः उपर्युक्त सभी उदाहरण तथा पाठ में वर्णित सभी प्रकरण इस बात को दर्शाते हैं कि 'गिरगिट'पाठ समाज में व्याप्त चाटुकारिता पर करारा व्यंग्य है।

10. (क) संसार सभी प्राणी के लिए है और सभी प्राणी का इस संसार पर समान अधिकार है। सभी प्राणी इस संसार के समान हिस्सेदार हैं। परंतु मनुष्य ने अपनी तीव्र बुद्धि द्वारा प्राणियों के बीच दीवारें खड़ी कर दी है। इतना ही नहीं मनुष्य ने भेद-भाव कर अपनी ही मनुष्य जाति के बीच भी दीवारें खड़ी कर दी है।

(ख) पहले पूरा संसार एक परिवार के समान था। अब सभी टुकड़ों में विभाजित हो गए हैं। मनुष्य-मनुष्य के बीच दूरियाँ बढ़ती जा रही है। संयुक्त परिवारों से अब एकल परिवारों में रहने लगे हैं। बड़े-बड़े दालानों जैसे घर अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में तब्दील हो गए हैं। इन सभी का कारण मनुष्य का स्वार्थ तथा मनुष्य द्वारा बनाई गईं भेद-भाव की दीवारे हैं।

(ग) 'छोटे-छोटे डिब्बों जैसे घरों' द्वारा लेखक मनुष्य के वर्तमान रूप को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि अब घर छोटे फ्लैट में तब्दील हो गए हैं। यह फ्लैट लेखक को डिब्बे जैसा प्रतीत होता है।

11. (क) कवयित्री 'महादेवी वर्मा जी' के मन में अपने अज्ञात ईश्वर के प्रति अनुराग व् आसक्ति है। वे ईश्वर को अपना प्रियतम मानती हैं तथा उनमें एकाकार हो जाना चाहती हैं। वे ईश्वर को प्राप्त करने हेतु प्रत्येक बाधा का सामना करने के लिए सज्ज हैं। अतः वे अपने आस्था रूपी दीपक से यह आग्रह करती हैं कि वह सदैव जलता रहे तथा ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग को आलोकित तथा उज्ज्वलित करता रहे।

(ख) 'कर चले हम फ़िदा' कविता भारत-चीन युद्ध के दरमियान लिखी गयी थी। इस दौरान भारतीय सेना में सैनिकों की नितांत आवश्यकता थी। अतः कवि ने भारत के युवाओं को फ़ौज में भरती होने का आह्वाहन करते हुए, देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने का आग्रह करते हुए तथा उन्हें प्रोत्साहित करते हुए 'साथियों' संबोधन का प्रयोग देश के युवाओं के लिए किया है।

(ग) कवि बिहारी कहते हैं कि ग्रीष्म ऋतू की प्रचंड व भीषण गर्मी कर कारण संसार तपोवन की भाँति जल उठता है। इस गर्मी में सभी क्रूर प्राणी सौम्य हो जाते हैं जैसे तपोवन में जाकर होते हैं।

12. 'मनुष्यता' कविता द्वारा कवि 'श्री मैथलीशरण गुप्त' मनुष्य जाति को उनके वास्तविक लक्षण तथा कर्तव्यों का बोध कराते हैं। वे कहते हैं कि वास्तव में मनुष्य वही होता है जो मनुष्य के लिए मरता है। मनुष्य को परोपकारी तथा उदार होना चाहिए। स्वार्थ हेतु जीना पशु-प्रवत्ति है, परार्थ हेतु जीना ही मनुष्य की प्रवत्ति है। विपरीत परिस्थितियों में भी जनहित तथा जनकल्याण के विषय में सोचना मनुष्यता के लक्षण हैं। मनुष्य हाटी के उद्धार हेतु अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाला मनुष्य कहलाता है। कर्ण, रंतिदेव, दधीचि का उदाहरण देकर कवि मनुष्यों को यही सन्देश देते हैं। कि विश्व में आत्म भाव का प्रचार करना अत्यावश्यक है। परस्परावलंब अर्थात एक दूसरे का सहारा बनकर, सहयोग करना मनुष्य का धर्म है। आखिर सभी मनुष्य बंधु हैं तथा इनकी निर्मिति करने वाला एक ही है। अतः कवि उपर्युक्त गुणों को अपनाने का संकेत देकर मनुष्यों को एक सुखी समाज की स्थापना करने का आग्रह करते हैं।

13. टोपी शुक्ला तीव्र बुद्धि का बालक था फिर भी वह नवीं कक्षा में दी बार फेल हुआ। इस कारणवश उसे कई भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कक्षा में उसके सहपाठी उसका उपहास किया करते थे। उसके शिक्षकगण भी उसे बुरा-भला कहते थे। उनका टोपी के प्रति रवैया सख्त था। टोपी को समझने वाला कोई नहीं था। वह पूर्णतः अकेला हो गया था। टोपी की भावनात्मक परेशानियों के मद्देनजर रखते हुए शिक्षा व्यवस्था में निम्न परिवर्तन किये जा सकते हैं। विद्यार्थियों को परीक्षाओं के आधार पर न आँककर, उनकी प्रतिभा के आधार पर आँका जा सकता है। उन्हें परीक्षाओं में प्राप्त किये गए अंकों के आधार पर उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण घोषित नहीं करना चाहिए। विद्यार्थियों की प्रतिभाओं को उचित प्रोत्साहन देना चाहिए। शिक्षकगणों को बाल मनोविज्ञान को समझना होगा।

खंड - घ

14.  (क)                                                       हमारा देश

"जहाँ डाल-डाल पर सोने की 
चिड़िया करती है बसेरा,
वो भारत देश है मेरा,
वो भारत देश है मेरा,
सोने की चिड़िया कहलाने वाला हमारा भारत विश्व का अद्वितीय राष्ट्र है। क्षेत्रफल के अनुसार भारत सातवें स्थान पर है। भारत का भौगौलिक विस्तार बहुत विशाल है। भारत संसार का सर्वाधिक त्योहार मनाने वाला राष्ट्र है। यह विभिन्न धर्म, जाति, संप्रदाय, आदि को मानने वाले नाना प्रकार के भाषा बोलने वाले नागरिक वास करते हैं। भारत का इतिहास, वेद-पुराण, दर्शनीय स्थल, विभिन्न व्यंजन आदि विश्व विख्यात हैं। विदेशी भारत की संस्कृति को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। परंतु यह भी एक कठोर सत्य है कि वर्तमान में भारत की समाजिक स्थिति ठीक नहीं है। चोरी, ठगी, भ्रष्टाचार, घरेलू हिंसा, नारियों का तिरस्कार प्रदूषण आदि कुरूतियों ने भारतीय समाज पर आक्रमण कर दिया है। यदि इस स्थिति को बदला ना गया तो भारत की छवि बिगड़ जाएगी। अतः कर्तव्यनिष्ठ नागरिक होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है कि हम भारत को विश्व फलक तक पहुँचाएँ।

15. सेवा में,
संस्था अध्यक्ष जी,
गांधी स्मृति संस्था,
क.ख.ग. नगर।
विषय: विश्व पुस्तक मेले में गांधी-साहित्य का प्रचार करने का अवसर प्रदान करने हेतु आवेदन पत्र।
महोदय,
            मैं आपके शहर में रहने वाली एक युवती हूँ। मुझे गांधी-साहित्य में बहुत रूचि है। मैंने गांधीजी द्वारा लिखित पुस्तकें भी पढ़ी हैं। इसके अतिरिक्त मेरा हिंदी और अंग्रेज़ी में समान अधिकार है। मैं दोनों ही भाषाओँ में अच्छे ढंग से वार्तालाप कर सकती हूँ। गांधी साहित्य का प्रचार करना मेरी चिरसंचित अभिलाषा है।
                                           अतः मैं आपसे सवनिय निवेदन करती हूँ कि विश्व पुस्तक मेले में 'गांधी दर्शन' से संबंधित स्टाल में गांधी-साहित्य का प्रचार करने हेतु आप मुझे अवसर प्रदान करें। मैं वादा करती हूँ कि आप निराश नहीं होंगे।
सधन्यवाद
भवदीया
क्ष.त्र.ज्ञ.
क.ख.ग. नगर
दिनांक - 12 मार्च 2015

16.                                                              अ.ब.स. विद्यालय
सूचना

तिथि: 12 मार्च 2015
विषय: 'नेत्र चिकित्सा शिविर'

स्थानीय जनता को यह सूचित किया जाता है कि अ.ब.स. विद्यालय में नेत्र चिकित्सा शिविर का आयोजन किया है।
शुल्क: निःशुल्क
दिनांक: 16 मार्च 2015 से 22 मार्च 2015
समय: सुबह 7 बजे से शाम 4 तक
सम्पर्क करें: क्ष.त्र.ज्ञ.
फोन नं: 99xxxxxxxx

17. (मेरा मित्र और मैं बाग़ में बैठे हैं। हमारे बीच हो रही बातचीत।)
मैं: आजकल जिसे देखो हाथ में मोबाइल लेकर घूमता है।
मित्र: सही कहा। मेरी कामवाली से लेकर मेरे बॉस तक, सबके पास मोबाइल है।
मैं: आखिर मोबाइल इतना लाभदायक जो है। संदेश पहुँचाने का बढ़िया साधन है।
मित्र: संदेश ही नहीं, गीत सुनने, खेल खेलने, इंटरनेट का प्रयोग करने, तस्वीर खींचने में भी तो मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं।
मैं: पर मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उसमें से निकलते सिग्नल दिमाग को हानि पहुँचाते हैं।
मित्र: सो तो है। अरे ! यह देखो, मोबाइल की बात की और मेरा मोबाइल बजने लगा है।
मैं: (हँसती हूँ) हाहा!!

18.
Question Number 18 Solution

No comments:

Post a Comment